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खग्रास

श्री राविन डे ने कुछ संदिग्ध स्वर में कहा---"लेकिन उपग्रह छोड़ने में अमेरिका रूस से क्यों पिछड़ गया?"

"राकेट और उपग्रहो के सम्बन्ध में रूसी सफलता का रहस्य यह है कि वे विश्व की विज्ञान सम्बन्धी सूचनाओ एव ऑकड़ो से लाभ प्राप्त करते है।"

"क्या आपने इस सम्बन्ध में स्टेन फोर्ड अनुसन्धान संस्था के निर्देशक डा० फिन्ले कारटर की रिपोर्ट पढ़ी है?"

"हॉ, उन्ही ने रूसी वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिक संस्था की विज्ञान सम्बन्धी सूचनाओ और आँकडो का संकलन किया है।"

"क्या यह रूसी संस्था प्रामाणिक है?"

"अत्यन्त प्रामाणिक। इसमे १२ सौ से अधिक विशेषज्ञ काम कर रहे है। तथा २० हजार वैज्ञानिक और इन्जीनियर तथा अनुवादक सहायता कर रहे है। यह संस्था संसार के ८० देशो में प्रकाशित की गई प्रौद्योगिक इतिहास सम्बन्धी १० हजार पत्रिकाओ को संकलित कर वैज्ञानिको को देती है। जिससे रूसी प्रयोगशाला के वैज्ञानिक एव इन्जीनियर अपने विषयो में दिलचस्पी रखने वाले लेखो का सारांश तथा अनुवाद प्राप्त कर लेते है। यही कारण है कि प्रक्षेपणास्त्रो, कृत्रिम उपग्रहो, दूर-मारक अस्त्रो आदि के विकास में रूस पश्चिमी देशो से आगे बढ़ा हुआ है।"

"क्या योरोप और अमेरिका में रूस की इस संस्था जैसी कोई संस्था नहीं है?"

अफसोस, नहीं है। परन्तु हम उसकी अत्यन्त आवश्यकता अनुभव कर रहे है।"

"तो आखिर अब क्या करना चाहते हो?"

"हमने यह तय किया था कि सैनिक राकेटो का अन्तर्राष्ट्रीय भू-भौतिकी वर्ष के लिए उपग्रह छोड़ने के निमित्त प्रयोग न किया जाय। क्योंकि यह शुद्ध वैज्ञानिक कार्यक्रम था। इसलिए हमने यह सोचा था कि वैज्ञानिक कार्यक्रम के लिए विशेष प्रकार के राकेट बनाए जाएँ।"