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खग्रास

रहे थें। इसी समय उनके असिस्टेन्ट ने आकर उन्हें सूचना दी कि आप से मुलाकात करने हार्वेड विश्व विद्यालय के डा॰ कैरोल एम॰ विलियम्स आए हैं।

डा॰ कोल्टन भी बड़े भुलक्कड़ थें। वे भी इस बात को भूल गए थें वास्तव में उनके आने की बात प्रथम ही निश्चित हो चुकी थी। डाक्टर कोल्टन नींद से अचानक जागे हुए व्यक्ति की भाँति उछल पड़े। उन्होंने कहा—"ओह, हाँ हाँ, मुझे याद आ गया, डा॰ कैरोल के शायद इसी समय आने की बात थी। कैसा दुर्भाग्य है कि मैं ऐसी बातों को भी भूल जाता हूँ।" उन्होंने घड़ी पर नज़र डाली, फिर जैसे अब तक कहे अपने वाक्यों को भूल गए, उन्होंने फिर कहा—"डा॰ कैरोल-एम॰ विलियम्स ही न?"

"जी हाँ।"

"ठीक है। उनके इसी समय यहाँ आने की बात थी।" वे व्यस्त भाव से कुर्सी छोड़ कर उठ खड़े हुए। अपने असिस्टेण्ट से कहा—"उन्हें तुम यहीं बुला लाओ। और देखो, जब तक वे यहाँ रहे, कोई व्यक्ति किसी भी काम से भीतर न आने पाए। समझ गए न? कोई भी व्यक्ति।"

"जी हाँ, समझ गया।" वह चला गया।

अब डाक्टर कोल्टन व्यस्त भाव से अपने कक्ष में घूम गए। बड़ा विचित्र था यह कक्ष। छोटा सा, किन्तु विचित्र साज-सज्जा से संयुक्त। कक्ष चारों ओर से सर्वथा बन्द था। शुद्ध वायु-वातावरण तथा प्रकाश सब कुछ कृत्रिम ही उस कक्ष में था। परन्तु प्रकाश के लिए न कोई बल्ब या बत्ती ही थी, न और कुछ साधन। कक्ष में लगभग अन्धेरा था, केवल उनकी टेबल पर जो मोटा काँच बिछा था, वह हल्की नीली रोशनी से प्रकाशित था। उसी प्रकाश के सहारे वह आणविक भट्टी के माडल की परीक्षा कर रहे थें। कक्ष वातानुकूलित था। अब उन्होंने एक बटन दबाया और तत्क्षण ही सब काँच जो खिड़कियों में लगे थें, तथा धातु की सामग्री जो कुर्सियों, फर्नीचरों, दीवारों या द्वारों में लगे थें, वैसी ही हल्की नीली रोशनी से जगमगा उठें।