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खग्रास


"आपका मतलब सोना बनाने से है?"

"हॉ, देखता हूँ। सोना आपके इस घर मे लोहे और दूसरी हीन धातु की भाँति काम मे आ रहा है। आपके तो सारे ही पात्र सोने के है।"

बाला ने हस कर कहा—"तो आपको शायद सोने का यह प्रलोभन ही हमारे यहाँ खीच लाया है।"

"एक हद तक बात सही ही है।"

"तो आप मेरे साथ इधर आइए।" बाला यह कहकर उठी और एक ओर चल दी। पीछे-पीछे तिवारी भी गए। एक छोटे से कमरे में जाकर उसने एक खटका दबाया और समूचा कमरा नीचे पृथ्वी मे धँसने लगा। तिवारी घबराकर इधर-उधर देखने लगा। बाला ने कहा—"क्यो, घबराने की क्या बात है। लिफ्ट मे कभी आप चढे नही?"

"क्या यह लिफ्ट है?"

"नही तो क्या?"

"लेकिन हम कहां जा रहे है?"

"सात सौ फुट नीचे एक गुप्त कमरे मे, जो एक समूची चट्टान को काट कर बनाया गया है।

तिवारी को और प्रश्न पूछने का अवसर नही मिला। लिफ्ट रुक गई। बाहर आकर बाला ने एक बटन दबाया, एक खटके के साथ लोहकपाट खुल गया। दोनो एक अत्यन्त छोटे से कक्ष मे जा खडे हुए। कक्ष मुश्किल से ८X८ फुट लम्बा चौडा था। परन्तु समूचा कक्ष किसी एक विशाल चट्टान को काट कर बनाया गया था। कही जोड का नामोनिशान न था। कक्ष मे सोने की छडो की चार बडी-बडी ढेरियाँ लगी हुई थी जैसे मलबे का ढेर पडा हो । समूचे कक्ष मे बिजली का प्रकाश फैला हुआ था।

बाला ने कहा—"ले लीजिए जितना चाहे।"

"क्या यह सब सोना है?"

"आप क्या सोने को भी नही पहचानते?"