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पृष्ठ:खग्रास.djvu/२७०

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खग्रास


"पापा क्या विश्व भर के महापुरुषो मे इस अद्भुत यन्त्र की सहायता से बातचीत करते है?"

"हॉ, हॉ, ब्रह्माण्ड भर मे जहाँ जो है, वह पापा की दृष्टि से बाहर नही है। इसके अतिरिक्त पापा आजकल एक अत्यन्त गम्भीर कार्य मे व्यस्त है।"

"वह कार्य क्या है?"

"आप शायद समझ न सके। आपने आकाश गङ्गा तो देखी होगी?"

"हॉ, हॉ, हम कभी-कभी दूर तक आकाश मे फैली हुई धवल आकाश-गङ्गा को देखते है।"

"तो आपको ज्ञात होना चाहिए कि यह आकाश गङ्गा करीब ५० अरब ग्रहो का एक समूह है और हमारा यह विराट् सूर्य उन पचास अरब ग्रहो मे से एक है।"

"मैं तो इस महान गणित की गणना भी नही कर सकता।"

"तो सोवियत ज्योति वैज्ञानिक प्रो॰ वोरिल कुकारिन और श्री फोकिन एक ऐसे अन्तरिक्ष यान की कल्पना कर रहे है जो सौर मण्डल को पार कर आकाश गङ्गा को भी पार कर जायगा। पापा इस काम मे बहुत दिलचस्पी ले रहे है और उनसे उक्त दोनो ही रूसी विद्वानो का विचार विनिमय होता रहता है।"

"दूसरे शब्दो मे पापा स्वय एक महान शक्ति पुज है। फिर क्या कारण है कि वे हमारी राष्ट्रीय सरकार की सहायता नहीं कर रहे।"

"कैसी सहायता?"

"रूस और अमेरिका इसी वैज्ञानिक बल पर ही तो संसार की महाशक्ति बने हुए है। पापा तो अकेले ही इन सब वैज्ञानिको के ऊपर है। क्यो नही अपनी वैज्ञानिक सेवाएँ हमारी सरकार के अर्पण कर देते?"

"तो आप क्या समझते है कि पापा भी रूसी और अमेरिकी वैज्ञानिको की भाँति अपनी विज्ञान सत्ता को राजनीति की दासता का प्रतीक बना देगे?"