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पृष्ठ:खग्रास.djvu/२७१

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खग्रास


"राजनीतिक दासता का प्रतीक कैसे?"

"क्या आप नहीं देख रहे कि रूस और अमेरिका के वैज्ञानिक किस प्रकार अपनी-अपनी सरकारो की दासता मे बँधे हुए विज्ञान को मनुष्य का मृत्यु दूत बना रहे है। इसके अतिरिक्त अपने देश की राष्ट्रीय धनराशि का अत्यन्त भयानक अङ्क इसी काम मे खर्च कर रहे है। यदि ये वैज्ञानिक पापा की बात मानते और राजनीतिक दासता से मुक्त होकर शुद्ध वैज्ञानिक अन्वेषण करते तो आज विश्व पर जो भय की काली छाया छाई हुई है, वह न छाई होती अथवा संसार के मनुष्यो का रहन-सहन अब तक बहुत कुछ वैज्ञानिक सुख-साधनो से सम्पन्न अत्यन्त भव्य बन गया होता तथा मानव जीवन भी रोग-शोक से मुक्त होकर नवजीवन का आनन्द लेता। और जो भीषण रकम इन देशो की सरकारे विध्वसक शक्ति बढाने मे खर्च कर रही है, लोककल्याण-कारी कामो मे खर्च होती। मनुष्य को कितना सुख मिलता इससे।"

"परन्तु इस समय तो इन्ही विध्वसक महास्त्रो की बदौलत रूस और अमेरिका महाशक्तिशाली राष्ट्र बने हुए है।"

"खाक शक्तिशाली राष्ट्र बने हुए है। आपसे अधिक तो मैं इस शक्ति के रहस्य को जानती हूँ और कह सकती हूँ कि आज ये ही दोनो राष्ट्र संसार के सबसे भयभीत राष्ट्र है। जो अकारण ही शत्रु शक्ति के सन्तुलन मे लगे है। शत्रुता का न कोई मूलाधार कारण है, न वास्तव मे आज के युग मे उसके अनुकूल वातावरण ही है। केवल राजनीतिक गलतफहमियाँ और प्राचीन परम्परा से चली आती हुई सैनिक रूढियो ने उन्हे चक्कर मे डाला हुआ है और वे अपने वैज्ञानिको को भी उसी चक्कर मे घुमा रहे है। पापा तो चाहते थे कि संसार के सब वैज्ञानिक मिलकर विश्व के कल्याण की कामना से वैज्ञानिक विभूतियो से संसार के मनुष्यो को सम्पन्न करते चले जाएँ। परन्तु उनकी बात ये सरकार नहीं मानती। इसी से तो पापा अमेरिका से चले आए।"

"तो वे अब भारत की शक्ति को दृढ करे।"

"कौनसी शक्ति को? आपका मतलब शायद यह है कि वे भारत को