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खग्रास


"बातचीत का विषय शायद अत्यन्त महत्वपूर्ण है।"

"महत्वपूर्ण तो है ही, नितान्त गोपनीय भी है। आपने देखा था न रूसी सूर्यलोक का अतिक्रमण करने की तैयारी में है।" प्रतिभा ने जरा मन्द स्वर से कहा।

"हाँ, हाँ, मैं उस आश्चर्यजनक दृश्य को भला कैसे भूल सकता हूँ। तो बातचीत उसी विषय पर हो रही है?"

"हाँ, अब वे शीघ्र ही अपना वह उपग्रह छोडने वाले हैं। इस सम्बन्ध मे कुछ गम्भीर बाधाएँ है। उन्ही को लेकर पापा से परामर्श कर रहे है। इस समय इस परामर्श गोष्ठी में रूस के ६७ महावैज्ञानिक, इजीनियर और ज्योतिर्विद तथा गणितज्ञ सम्मिलित है तथा आधी रात से ही गोष्ठी चल रही है।"

"तो तब तक आप आज्ञा दीजिए मैं आपकी सहायता करूँ?"

"खुशी से। देखिए ये सब फूल भारत मे नहीं होते। दक्षिणी ध्रुव प्रदेश के प्रान्त भाग मे एक स्थान है, वहाँ होते है।"

"लेकिन इनकी जडे तो पानी मे ही लटक रही है। मिट्टी है ही नहीं।"

"ये पौदे मिट्टी मे नही पनपते। यो भी हम कोई भी पौदा बिना मिट्टी के पैदा कर सकते है?"

"यह तो बड़े ही आश्चर्य की बात है?"

"विज्ञान मे आश्चर्य शब्द का कोई स्थान नही है। आइए देखिए।"

वह उन्हे एक दूसरी क्यारी मे ले गई जहाँ बहुत से तरोताजा पौदे लकडी के गमलो मे लटक रहे थे। उनकी जडो मे मिट्टी न थी। उसने कहा—"देखो, ये सब पौदे भारतीय है।

"किन्तु ये पौदे बिना मिट्टी के कैसे पनपते है?"

"बिना मिट्टी के पौदो को उगाने की कलात्मक विद्या को जल कृषि या हाईड्रोयोनिक्स कहते हैं। पापा जब अमेरिका मे थे, तभी उन्होंने इस