सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:खग्रास.djvu/२८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८३
खग्रास

कला का विकास किया था। अब वहाँ इस प्रकार बगीचो मे पौदो के उगाने का आम चलन हो गया है।

"परन्तु क्या इस विधि से सर्वत्र पौधे उगाए जा सकते है?"

"हॉ, यह विधि तो बहुत सरल है। और बड़ी आसानी से घरो मे इस प्रकार बिना मिट्टी के पौदे और फूल उगाए जा सकते है। असल बात यह है कि पानी मे वे सब तत्व जो पौदे जडो द्वारा भूमि से स्वाभाविक रूप मे ग्रहण करते है, मिला दिये जाते है।"

"खूब, यह तो बड़ी चमत्कारिक बात है। खैर, तो यह काम कैसे किया जाता है?"

"लगभग १५ सैन्टीमीटर गहराई व २० सैन्टीमीटर चौड़ाई का कांच अथवा इनेमिल का एक बर्तन लीजिये। यदि बर्तन काँच का हो तो प्रकाश रोकने के लिए उसे बाहर से काला रग दिया जाय या मोटा कागज लपेट दिया जाय। बर्तन को ढकने के लिए तार की जाली, जिसके छिद्रो का वर्ग ०.६ सैन्टीमीटर या चौथाई इच हो, लकड़ी के फ्रेम मे इस तरह लगा देनी चाहिये कि उसके किनारे लगभग ५ सैन्टीमीटर ऊपर उठे रहे। जाली के ढक्कन मे एक तह लकड़ी के छीलन की बिछा कर उस पर थोडा बुरादा रख दीजिए, बुरादे मे बीज बो दीजिए, और इसके ऊपर छीलन की दूसरी तह बिछा कर पानी छिड़क दीजिए और यह जाली का ढकना खाली बर्तन के ऊपर रख दीजिए।"

"यह तो बहुत साधारण बात है।"

"लकड़ी का छीलन तर रखिए। अंकुर फूटने के बाद से उस पर रासायनिक घोल की कुछ बूंदे थोडे से पानी में मिलाकर प्रति सप्ताह दो बार जमते पौदो पर छिडकते रहिए।"

"बहुत खूब।"

"और जब जड़ें लगभग २|३ सैन्टीमीर बड़ी हो जाये तब बर्तन में इतना पानी भरिये कि जड़ों के सिरे पानी मे डूबने लगे। पर पानी भरने मे