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खग्रास


है। या उसकी अपेक्षा करनी पड़ती है। अतः काल से भी सापेक्षता का सम्बन्ध है।"

"कदाचित यही भाव व्यक्त करने को न्याय दर्शन के काल को अतीतादि के व्यवहार का हेतु कहा है।"

"हो सकता है। आईस्टीन कहते है, पृथ्वी स्वयं सूर्य के चारो ओर घूमती है, और सूर्य अपनी धुरी पर घूमता हुआ सौर मण्डल सहित किन्ही अन्य ग्रहो का चक्कर लगा रहा है। पृथ्वी की गति पर आधारित हमारा काल मान वास्तव मे अपनी सही व्याख्या के लिए अन्य सम्बद्ध भ्रमणशील पदार्थों की सदैव अपेक्षा रखता है। यही काल मे सापेक्ष्यता की विद्यमानता है।"

"प्रकाश के सम्बन्ध मे भी तो आईस्टीन ने एक नई मान्यता उपस्थित की है। उन्होने इस पुरानी धारणा को गलत सिद्ध कर दिया है कि प्रकाश का माध्यम ईथर (व्योम) है।"

"उनकी मान्यता है कि प्रकाश की गति सदैव समान है। इसलिए ईथर उसका माध्यम नही है। आईस्टीन की इस मान्यता ने ही उस अभूतपूर्व सूत्र को जन्म दिया जिसके अणु से अणुशक्ति का दोहन सम्भव हो गया।"

"क्या आप इस रहस्य पर प्रकाश डालेगे?"

"बडी उलझन का विषय है। आईस्टीन ने प्रयोग द्वारा यह सिद्ध किया कि ऊर्जा (एनर्जी) और भूतद्रव्य (मैटर) मूल रूप मे अभिन्न पदार्थ है। और उनका रूपान्तरण भी सम्भव है। उनका कहना है कि किसी भी गतिशील पदार्थ की ऊर्जा मे उसकी गति के अनुपात से वृद्धि हो जाती है। उनकी इस मान्यता ने न्यूटन का यह सिद्धान्त खडित कर दिया कि पदार्थ की ऊर्जा स्थिर है। अब तक ऊर्जा और द्रव्य भिन्न पदार्थ माने जाते थे। अब भूत द्रव्य और ऊर्जा की मौलिक एकता के सिद्धान्त के आधार पर ही अमेरिका में प्रथम तो अणुभजक (साइक्लोट्रोन) यन्त्रो का निर्माण हुआ और उनमे अणुकणो को