मास्को का खब्ती वैज्ञानिक
अब से कोई पचास बरस पूर्व मास्को के एक खराब खस्ता मकान की चौथी मजिल मे एक तग और अधेरे कमरे मे, जिसकी खिडकियो के शीशे टूटे हुए थे, एक अधेड अवस्था का पुरुष अस्तव्यस्त कपडे पहने किसी धुन मे एक साधारण मेज के पास बैठा पेन्सिल से एक कागज पर टेढी-मेढी रेखाएँ खीच रहा था। कभी उसके माथे पर बल आ जाते, कभी होठो पर मुस्कान फैल जाती, कभी वह बेचैन सा होकर कुर्सी पर से उछल कर खड़ा हो जाता था। यह अर्द्धविक्षिप्त-सा व्यक्ति महान् वैज्ञानिक स्त्यत्कोव्स्की था। वर्षों से यह व्यक्ति वायुमण्डलीय सीमा पार ब्रह्माण्ड यात्रा सम्बन्धी प्रश्नो का हल करने मे लगा था। वह आम तौर पर उससे मिलने आने वाले मित्रो से राकेट के द्वारा ब्रह्माण्ड की उडानो की चर्चा किया करता और वे उसकी बाते सुनकर खूब हंसते थे। मित्रो की हँसी पर कभी वह क्रुद्ध हो जाता और कभी गम्भीर होकर उन्हे समझाता कि अन्तर-तारक समस्याओ का समाधान करके किस प्रकार कृत्रिम उपग्रह छोडा जा सकता है।
धीरे-धीरे वैज्ञानिक उसकी बातो मे सत्यता का आभास पाने लगे और उनका एक दल स्त्यत्कोव्स्की के साथ मिलकर विविध वैज्ञानिक और इन्जीनियरिंग सम्बन्धी जटिल समस्या का समाधान करने लगा। बहुधा वे सब मिलकर रात रात भर बहस करते रहते। जारशाही का जमाना था जब बडी से बडी शक्तियां ऐश, मौजो और शराबखोरी मे लगी थी। जनता निरीह, दरिद्र और भुखमरी का शिकार हो रही थी। एकतन्त्री शासन था, जहाँ मनुष्य के प्राणो का मूल्य मक्खी के बराबर भी न था। कौन इस खब्ती वैज्ञानिक को सहारा देता? वे लोग बहुधा एक कृत्रिम ग्रह के डिजाइन और उसे आकाश कक्षा मे ले जाने वाले वाहक राकेट की चर्चा करते। अन्तत उन्होंने एक इतने बडे शक्तिशाली इजन का डिजाइन बना ही लिया जो आकाश की तीव्रतम-ताप-अवस्थामो मे भी काम कर सके। राकेट की गति और उसके सफल प्रयोग के लिए अधिक से अधिक अवस्थाओ का हिसाब लगाया गया और अत्यन्त सूक्ष्म शक्तिशाली, अपने आप चलने और नियन्त्रण