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खग्रास

रखने वाले यन्त्रो की रूपरेखा रची गई जो राकेट को प्रक्षेप-वक्र द्वारा आकाश मे ले जा सके।

समय बीतता चला गया। पृथ्वी पर दो महा भीषण सग्राम हुए। रूस मे महान् क्रान्ति के दर्शन हुए और महान् वैज्ञानिक स्त्वत्कोव्स्की के स्वप्न सोवियत संघ मे क्रियात्मक रूप मे साकार होते चले गए। विज्ञान और इजीनियरिग के क्षेत्रो मे असाधारण सयुक्त प्रयोग हुए और राकेट-निर्माण टेक्नीकल उन्नति की चरम सीमा तक पहुंचा। सोवियत संघ मे उच्च वैज्ञानिक विचारणा, अन्वेषण सस्थाओ का सुसगठन, डिजाइनिग विभागो और व्यावसायिक औद्योगिकता के विकास ने अन्तत एक उपग्रह का निर्माण सचमुच ही कर डाला। इसके छोडे जाने से पूर्व इसके डिजाइन के बारे में बड़े व्यापक परीक्षण किए गए। ऐसी व्यवस्था की गई कि वह अपने पृथक् पृथक् भागो और उनके समूह रूप मे एक सुसचालित यन्त्र के रूप मे काम कर सके। उपग्रह की सफल यात्रा से सम्बन्धित गणित के हिसाबो और वाहक-राकेट और उपग्रह की डिजाइनिंग सम्बन्धी टेक्नीकल समस्याओ की मूलभूत शुद्धता का अत्यन्त सावधानी से विचार किया गया।

उपग्रह का यह निर्माण अन्तर-तारक आकाश और ब्रह्माण्ड उडान सम्बन्धी समस्याओ की विजय की ओर पहला कदम था। अन्तत ४ अक्टूबर १९५७ के दिन सारे ससार ने सोवियत संघ द्वारा छोडे हुए इस कृत्रिम भू-उपग्रह को देखा। जब इसके वाह्य अन्तरिक्ष मे छोडने की घोषणा ससार ने सुनी तो ससार के सब महाद्वीपीय निरीक्षको ने इसकी व्योम मण्डल की यात्रा को अकित किया। वह क्षण मानव जाति की उत्सुकता का महानतम क्षण था। इस घटना ने मानव मस्तिष्क को विज्ञान के एक नए शुभ और रचनात्मक दृष्टिकोण पर केन्द्रित कर दिया। और उसकी ध्वसात्मक भीषणतम विभीषिकाएँ, जिनमे विश्व की महत्तम शक्तियाँ व्यस्त थी, फीकी पड़ गई। मानव मस्तिष्क एक नए उत्थान, नई भावना, नई आशा से भर उठा।

इस कृत्रिम भू-उपग्रह का आकार गोल था। यह एक वाहक-राकेट के अगले भाग मे लगा था तथा उसका रक्षा-शकु ढका हुआ था। इस वाहक-