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खग्रास

राकेट को आकाश मे शिरोबिन्दु की ओर छोडते ही यह धीरे-धीरे ऊपर लम्ब की ओर एक विशेष कक्षा मे कई सौ किलोमीटरो की ऊँचाई पर पहुच कर ८ हजार मीटर प्रति सेकेण्ड की गति से पृथ्वी के समानान्तर चक्कर काटने लगा। जब इसके इजनो ने काम करना बन्द कर दिया तो रक्षा-शकु उससे अलग हो गया और उससे लगा कृत्रिम भू-उपग्रह स्वतन्त्र रूप से अन्तरिक्ष मे विचरण करने लगा।

 

स्पूतनिक

 

इस भू-उपग्रह का नाम स्पूतनिक था।

इसकी कक्षा लगभग ऊनेन्द्र थी जिसके नाभीफनो मे से एक एक पृथ्वी केन्द्र मे थी। इस उपग्रह के प्रक्षेप-वक्र की ऊँचाई स्थायी न थी। समय-समय पर वह १ हजार किलोमीटर तक के उच्चतम बिन्दु पर पहुँच जाती थी। उसके छोडने के और अन्तरिक्ष मे पृथ्वी के चारो ओर विचरण करने के समय उसकी कक्षा का भू-समीपतम बिन्दु उत्तरीय गोलार्द्ध मे, और भू-दूरतम बिन्दु दक्षिणी गोलार्द्ध मे था। स्थिर-तारको के सम्बन्ध मे कक्षा-पृष्ठ का अनुस्थिति ज्ञान लगभग स्थिर था। क्योकि पृथ्वी अपने धुरे पर घूम रही थी, यह कृत्रिम भू-उपग्रह प्रत्येक अगले परिभ्रमण मे प्रति बार लगभग २४° दूरी पर रहने के कारण पृथक् पृथक् स्थानो पर दिखाई दिया। कक्षा-पृष्ठ केन्द्र से गुरुत्वाकर्षण-क्षेत्रो के विस्थापन के कारण पृथ्वी की गति की विपरीत दिशा मे हुआ। कक्षा-पृष्ठ की इस गति का महत्व न था। रेखाश-दिशा मे वह प्रत्येक चक्कर मे लगभग चौथाई अश था। पृथ्वी और कक्षा-पृष्ठ की सापेक्षिक गति के कारण यह उपग्रह कक्षा-पृष्ठ विषवत् तल से ६५° के कौण पर झुका हुआ था और मास्को की अक्षाश-रेखा से वह प्रत्येक पूर्ववर्ती चक्कर से लगभग १५०० किलोमीटर की ऊँचाई पर पश्चिम मे दीखता था। तथा इसका प्रक्षेप-वक्र लगभग उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवीय गोलो के ऊपरी प्रदेश पर था। पृथ्वी के अपने धुरे पर चक्कर काटने के कारण विषवत् रेखा से इसका प्रक्षेप-वक्र कोण कक्षा-पृष्ठ के कोण से भिन्न था। उत्तरीय गोलार्द्ध को पार करते