पृष्ठ:खग्रास.djvu/४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२
खग्रास

हुए प्रक्षेप-वक्र विषुवत्-तल से उत्तर पश्चिम की ओर ७१ ५° से गुजरकर धीरे-धीरे पूर्व की ओर मुड़ता था और फिर ६५° उत्तरीय अंक्षाश पर पहुँच कर दक्षिण की ओर मुड़ जाता था। फिर दक्षिण पूर्व दिशा में ५९° अंश कोण से विषवत तल को पार कर जाता था। दक्षिणी गोलार्द्ध मे प्रक्षेप-वक्र ६५° दक्षिणी अंक्षाश पर पहुच, उत्तर की ओर झुक, पुन उत्तरी गोलार्द्ध को पार करता था।

समयान्तर तथा पृथ्वी वायुमण्डल की ऊपरी सतहो में प्रतिरोध के कारण उपग्रह-कक्षा का रूप और आकार धीरे-धीरे बदलता रहा। क्योकि वायु-मण्डल की इन परम ऊँचाइयो का घनत्व कम है, प्रारम्भ में उपग्रह कक्षा के भ्रमण बिल्कुल मन्द रहे। भू-दूरतम बिन्दु की ऊँचाई अपेक्षातया भू-समीपतम बिन्दु की ऊँचाई से गिरी और उपग्रह कक्षा वृत्ताकार बन गई। इसके बाद जब भू उपग्रह ने वायुमण्डल के सघन स्तरो मे प्रवेश किया तो उसका प्रतिरोध अत्यन्त बढ गया, जिससे वह अत्यन्त उत्तप्त होकर भस्म हो गया और अन्तर-तारकीय आकाश मे गिर कर पृथ्वी के वायुमण्डल में नष्ट हो गया।

इसके बाद ३ नवम्बर को रूस ने दूसरा उपग्रह छोड़ा जिसमे एक जीवित कुत्ता भी था। व्योम अभियान की यातनाएँ बहुत थी। जैसे पानी में रहने वाली मछली को समुद्र की सतह पर लाने पर वह तड़पने लगती है क्योकि वह पानी में ही जीवित रह सकती है उसी प्रकार पृथ्वी पर और पृथ्वी की परिस्थिति में रहने के आदी मनुष्य को व्योम में अजीब परिस्थिति का सामना करना था। व्योम की अज्ञात परिस्थितियो का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है, यही जानने के लिए रूस ने कुत्ते को भेजा था, क्योकि कुत्ते के अंग प्रत्यग अच्छी तरह विकसित होते है। कुत्ते को भेजने से पूर्व अन्य जानवरो पर भी परीक्षण किए गए थे कुत्तो को एक दवाब कक्ष में रखा गया था जिसमे हवा का दवाब कम कर दिया गया था। तीस सैकेण्ड बाद देखा गया तो सब कुत्तो के शरीर मे सूजन हो गई थी। यह भी देखा गया कि पाँच मील तक ऊपर जाने में शरीर के तंतुओ में जो नाइट्रोजन घुली हुई होती है, वह गैस में बदल गई थी। कोषो पर फोड़े उठने लगे थे। लगभग बारह मील