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खग्रास

"वे है सूर्य द्वारा विकीर्ण शक्तियाँ।"

"वे क्या है? क्या हम पृथ्वी पर रहने वाले प्राणी उनका अनुभव नहीं करते?"

"नहीं। सूर्य जितनी किरणे छोड़ता है, उनमे से बहुत कम पृथ्वी तक पहुँच पाती है। बहुत-सी किरणो को पृथ्वी तक पहुचने से प्रथम ही वायुमण्डल चूस लेता है। ऐसी ही एक अल्ट्रावायलेट किरण हे जो पूर्ण रूप से वायुमण्डल में समा जाती है। परन्तु वायुमण्डल के ऊपरी स्तर पर इन किरणो का विकिरण इतना घना है कि यदि वहाँ एक भी जीवित सेल पहुँच जाय तो तत्काल ही उसकी मृत्यु हो जायगी।"

"तब तो इन्हे एक प्रकार से मृत्यु किरण ही कहना चाहिए।"

"निस्सदेह, परन्तु प्रकृति का करिश्मा यह देखो कि कॉच का एक साधारण आवरण भी इन किरणो को पूर्ण रूपेण चूस लेता है।"

"और तुम तो उत्कृष्ट श्रेणी के स्टील और एल्यूमिनियम के प्रावरण मे सुरक्षित थे।"

"यही बात थी जिसने मेरी रक्षा कर ली। परन्तु जीवन की शत्रु केवल ये ही किरणे थोड़ी ही है, एक्स किरणे भी है। परन्तु इनसे भी रक्षा हो सकना कुछ कठिन नहीं। पर सबसे भीषण और प्रचण्ड घातक हे कास्मिक किरणे।"

"कास्मिक किरणो के सम्बन्ध में तो तुमने अपनी प्रयोगशाला में काफी अनुसन्धान किया है।

"वे मेरी नजर से ओझल थोड़ी ही थी। तुम्हे मालूम है कि मेरी इस अन्तरिक्ष यात्रा की तैयारी में सात बरस लगे जिनमे पूरे तीन बरस मैंने कास्मिक किरणो के अनुसन्धान में खर्च किए।"

"मैं तो तुम्हारे साथ ही इस अनुसन्धान में रही। मैं जानती कि ये अतिसूक्ष्म किरणे है और इनके सूक्ष्म कण विविध रासायनिक तत्वो के नाभिकेन्द्र होते है। इनमे अस्सी प्रतिशत हाइड्रोजन, नाभिकेन्द्र होते है परन्तु लोहे जैसे भारी तत्वो के नाभिकेन्द्र इसमे कम होते है।"