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पृष्ठ:खग्रास.djvu/७८

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खग्रास

"बीस सैकण्ड"

"पन्द्रह सैकण्ड"

"दस सैकण्ड"

मैंने दायाँ हाथ अपने पैराशूट के बटन पर और बायाँ राकेट पर रखा---कहा---"हॉ।"

"पॉच सैकण्ड---सावधान"

"हाँ"

"तीन सैकिण्ड"

"दो सेकण्ड"

"एक सैकण्ड।"

"अब कूदो।"

दोनो ही बटन मैंने दबा दिए। एक भयानक विस्फोट की आवाज मैंने नीचे उतरते-उतरते सुनी। पैराशूट मुझे ठीक तौर पर नीचे ले जा रहा था और मैं आराम से नीचे उतर रहा था। एक छोटा राकेट मेरे कवच में था उसे मैंने संचालित किया और मैंने पृथ्वी की ओर देखा। प्रोफेसर की आवाज आई--तुम दिल्ली पर हो। केवल सात हजार फीट की ऊँचाई पर। क्या तुम्हे अपनी गति पर नियन्त्रण है?"

"हॉ, प्रोफेसर।"

"दिल्ली में सोवियट प्रजातन्त्र की चालीसवी सालगिरह मनाई जा रही है। वहाँ लिज़ा तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है। सावधानी से उतरो परन्तु यथासम्भव अपना आगमन अभी गुप्त रखना, सावधान।"

"धन्यवाद प्रोफेसर, आप निश्चिन्त रहे।"

और मैं अब धीरे-धीरे उतर रहा था। तुम्हारे मिलने की आशा ने मुझ में नया बल ला दिया था। अब मैं दिल्ली के ऊपर केवल एक हजार फीट की ऊँचाई पर चक्कर लगा रहा था। सारा शहर प्रकाश से जगमग हो रहा था। शीघ्र ही मैंने सोवियट दूतावास को पहचान लिया। उस पर लाल स्टार बिजली के प्रकाश में सबसे ऊपर जगमगा रहा था। मैं बिना ही प्रयास के दूतावास की छत पर उतर गया और मेरी यह यात्रा समाप्त हो गई।