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पृष्ठ:खग्रास.djvu/८१

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खग्रास

"तो क्या तुम्हारा इरादा फिर वह खतरनाक यात्रा करने का है?"

"वाह, हमारी यह यात्रा तो नितान्त गोपनीय थी। असल यात्रा तो अब होगी जिसे दुनियाँ देखेगी और इस बार तुम भी मेरे साथ चलोगी।"

"चन्द्रमा पर पहुँच कर हमे क्या मिलेगा?"

"यह गलत सवाल है। यह पूछो---क्या नही मिलेगा।"

"खैर, यही बताओ।"

"पहली चीज मानव जीवन के लिए है---हवा और पानी। ये दोनो चीजे चन्द्रमा में नहीं मिलेगी। जो मानव चन्द्रलोक में जायगा, उसे ये चीजे अपने साथ ले जानी होगी।"

"इन्हे ले जाने में तो बहुत खर्चा होगा?"

"बेशक। वह खर्चा इतना अधिक होगा कि पृथ्वी पर मुश्किल से एक दर्जन अमीर ही चन्द्रलोक की यात्रा का खर्चा बर्दाश्त कर सकेगे। परन्तु दोनो ओर का खर्चा बर्दाश्त करना तो पृथ्वी पर किसी के भी बस की बात नहीं है।"

"भला चन्द्रलोक का यात्री चन्द्रमा पर कहाँ उतरेगा?"

"चन्द्रमा पर उतरने के दो स्थान होगे, एक तो वह जो सूर्य के प्रकाश से चमकता है और जिसे हम पृथ्वी से देखते है। और दूसरा वह जो अन्धेरा है जिसे हम नहीं देख सकते।"

"दोनो क्षेत्रो में तो काफी भौतिक अन्तर है?"

"बहुत। मेरा अनुमान है कि सूर्य से प्रकाशमान भाग का तापमान पानी के उबलने के बिन्दु से ५० डिग्री अधिक ही होगा, और दूसरी ओर का तापमान हिमांक से २०० डिग्री नीचा हो सकता है।"

"क्या ये तापमान चन्द्रमा के धरातल के है?"

"हाँ, यदि चन्द्रलोक का यात्री बहुत अन्दर चला जाय तो सम्भवत उसे इतने भीषण तापमानो का सामना न करना पड़े। सम्भवत मानव को चन्द्रमा पर कोई भूमिगत कोठरी बनानी पड़ेगी जिससे वह सूर्य की किरणो