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पृष्ठ:खग्रास.djvu/८६

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खग्रास

"क्रेटर। इनकी आकृति गढो जैसी है जो मीलो तक बड़े होते है। इनकी गहराई ७००० फुट तक है। इनके किनारे काफी ऊँचे दीवारो की भाँति ऊपर उठे हुए है। इनके बीच मे पहाड़ भी है। चन्द्रमा में हर तरफ छोटे बड़े क्रेटर है। मेरा ख्याल है कि ये उल्काओ के चन्द्रमा से टकराने से बने होगे।"

"तुम कहते थे कि वहाँ मिट्टी नहीं है, राख ही राख है।"

"और वह भी अधिक नहीं, कुछ हाथ ही मोटी है। उसके नीचे पत्थर की चट्टाने है। हॉ, कही-कही मैंने गन्धक भी देखा।"

"और चन्द्रमा के दूसरी ओर?"

"अफसोस बहुत कम मैं उस ओर के परीक्षण कर सका। पर पहाड़ समुद्र और क्रेटर तो उस ओर भी है। पर पहाड़ उतने ऊँचे नही जितने इस ओर है। इधर के पहाड़ तो ५-६ मील ऊँचे है।

"क्या चन्द्रमा बहुत छोटा उपग्रह है?"

"उसका व्यास २१६० मील ही है।"

"हमारी पृथ्वी से चौथाई?"

"हाँ। चन्द्रमा के प्रकाश के पृथ्वी पर आने में डेढ़ सैकण्ड लगता है परन्तु एक बात यह है कि चन्द्रमा में कुछ चट्टाने पृथ्वी की मैगनेशियम सिलीकेट चट्टानो की तरह है। इन चट्टानो में विभिन्न मात्राओ में पानी होने की सम्भावना है जो १३ प्रतिशत हो सकता है। इन चट्टानो को पृथ्वी से व्योम स्टेशन होते हुए लाई गई मशीनो से पीसा जा सकता है तथा चट्टानो के इस चूर्ण को एक हजार डिग्री तक गर्म करके पानी एकत्र किया जा सकता है। तथा इस पानी को हाइड्रोजन और आक्सीजन में भी परिवर्तित किया जा सकता है। तुम्हे ज्ञात ही है कि ये दोनो गैसे राकेट में ईंधन का काम देती है।"

"सम्भव है चन्द्रमा में कुछ ऐसे पदार्थ हो जिन्हे मूलतत्वों में तोड़ा जा सकता है?"

"अवश्य ही ऐसी सम्भावना है। हम कह नहीं सकते कि अब से ५०