हुआ था। उसकी मूछे बड़ी ही सावधानी से तराशी हुई थी, उसके रंग-ढंग से प्रतीत होता था कि वह एक शौकीन तबियत धनी आदमी है। लाज के एक कौने में वह बैठा चुपचाप सिगार पी रहा था। इस समय लाज में बहुत कम आदमी थे। बहुत कुर्सियाँ खाली पड़ी थी।
जोरोवस्की ने सफेद सूट पहना था। सीढी से उतर कर ज्यों ही वह लाज की ओर बढा, उसकी नजर उस लम्बे आदमी पर पड़ी। उसने भी इसे देख लिया। देखते ही खड़े होकर जरा ऊँची आवाज में कहा---"आइए, इधर ही चले आइये। बड़ी अच्छी सन्ध्या है, आप तो उस दावत की रात के बाद दीखे ही नहीं।"
"धन्यवाद मिस्टर स्मिथ। निस्सदेह बड़ा सुन्दर मौसम है। हकीकत तो यह है कि ऐसा मौसम न आपके अमेरिका में है, न हमारे रूस में। वहाँ हम सर्दी में ठिठुर कर मर जाते है। ऐसी सुन्दर सन्ध्या---जब न सर्दी न गर्मी---भारत में ही होती है।"
"इसमें क्या सन्देह। क्यों न इस सन्ध्या को रंगीन बनाने के लिए एक पैग ह्विस्की ली जाय।"
"आपके प्रस्ताव का सहर्ष अनुमोदन करता हूँ। गनीमत है कि दिल्ली दिल्लीवालो के लिए ही ड्राई है। विदेशियो के लिए नहीं।"
"भला हम लोग बिना चुस्की कैसे जिन्दा रह सकते है?" वह हँसा और वेटर को शराब लाने का आदेश दिया।
"क्या आप सीधे रूस से चले आ रहे है?"
"जी हा। महज शौकिया। मेरी तबियत ही सैलानी है। एक बार सारी दुनियाँ का चक्कर लगा पाना चाहता हूँ। आप भी शायद।"
"जी नहीं, मैं तो अपने बिजनेस के जाल में फँसा हूँ। उसी सिलसिले में यहाँ आना हुआ है। खैर, तो आपको भारत कैसा लगा?"
"अभी मैंने देखा कहाँ है? परन्तु है यह अनोखा देश।"
"किस दृष्टि से भला?"
"एक बात हो तो कहूँ। मैं तो भारत में हर चीज निराली देखता हूँ।"