पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१०५

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सात खून।


सुनाई, इसके लिये मैं तुम्हें हृदय से असंख्य धन्यवाद देती हूँ।"

यों कह कर मैने कृतज्ञना-भरी दृष्टि उन पर डाली और फिर यो कहा,-"क्यों, भइया ! इस पुलिम के अनोखे महकमे में तुम्हारे ऐसे कितने देवता हैं ?"

मेरी बात सुन कर उस बेचारे ने मुहं फेर कर अपनी आंखें पोछी और यों कहा,-"दुलारी, इस महकमे की बात तुम कुछ न पूछो । अरे, यहां रोज ही ऐसे ऐसे शैतान पाते हैं कि जिनके संबन्ध पुलिस और उसके अफसरों को बड़ा हैरान व परेशान होना पड़ता है । बस, असल बात यही है कि रात-दिन शोहदे-बदमाशों से वास्ता पड़ने रहने के समय पुलिस और उसके अफसरों का ऐसा ही ढंग होजाता है और उन्हें सबके साथ वैसा ही बरताव करना पड़ता है, जिसकी कि उन्हें आदत पड़ी होती है। सुनो, ये कोतवाल साहस बुरे आदमी नहीं हैं ;पर एक तो रात दिन पापियों के साथ बातचीत करते करते इनकी आदत ही ऐसी पड़ गई है, दूसरे एक बात और भी है और यह यह है कि पुलिस के बड़े साहब की तरफ से इस बात की पूरी पूरी ताकीद हुई है कि, 'इस सात खूनों का जल्द पता लगा कर खूनी को मजिष्ट्रेट के आगे पेश करना चाहिए ।' अब तुम्हीं सोचो, दुलारी! कि इन सात सारा खूनों के सच्चे अपराधी क्या कहां जिन्दै हैं ? इस लिये कोतवाल साहब को तो अब एक न एक असामी चाहिए ही। सो, जब कि तुम आपने आप ही इस जंजाल में आ फंसी हो, तो फिर भला ऐसा अच्छा मौका थे कप छोड़ सकते हैं ! आप रही यह बात कि अगर तुम्हारे ऐसे ही पाटी से भाग होंगे, तभी तुम इस चकाबू से बच सकोगी; क्योंकि तुम बड़े वेमौके आ फंसी हो !"

यों कह कर रघुनाथसिंह इधर उधर रहलगे लगे गौर दो-चार फेरे करके फिर वे मेरी कोठरी के आगे आकर ठहर गए और कहगे लगे,--"दुलारी, क्या आज भी तुम दूध न पीभोगी ?"