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पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१०६

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खूनी औरत का


मैं बोली,--नहीं, भाई! मेरी कुछ भी खाने-पीने की इच्छा या रुचि नहीं है। दूध तो का, आज तो पानी पीने को भी जी नहीं चाहता।"

वे बोले--'तो इस तरह और कै दिन यों ही बिताओगी ?"

मैं बोलो,--"जबतक नारायण बित्तावेगा, तबतक पिताऊंगी। और जो बिना कुछ खाए-पीए मुझसे हो रहा जायगा, तो तुमसे कहूंगी ही। तब फिर जो कुछ तुम कहोगे, यही मैं करूंगी; पर अभी तुम मुझे क्षमा करो और खाने-पीने की शिफिर को बन्द कर रक्खी ।"

इस पर ऊन्होंने यों कहा,--"अच्छी बात है, क्योंकि तुम्हारी मरजी के खिलाफ मैं भी कुछ नहीं किया चाहता। अच्छा,अब तुम आराम से सोजाओ, क्योंकि मेरे पहरे में तुमको कोई भी न जगावेगा। मेरे पहरे के बाद शिवरामतिवारी का पहरा होगा और वे भी तुमको कोई तकलीफ न देंगे।

यह सुनकर मैंने उनसे पूछा,--"क्यों, भाई ! दरोगाजी के नादिरशाही हुक्म की भी तुम्हें कुछ खबर है ?"

वे बोले,--"खूब खबर है । वे ऐसे ही हजरत हैं ! उनकी लीला तुम सुनोगी, तो दस रह जाओगी । खैर, उस बात को छोड़ी क्योंकि अब दरोगाजी सुबह के पेश्तर यहां नहीं आगे के । इसलिये अब तुम रातभर खूब आराम के साथ सो लो, क्योंकि फिर कल दिनभर तुमको सोमा नसीब न होगा। इसकी वजह यह यह है कि दिन को दूसरे कांस्टेपिलों का पहरा होगा। हां, कल रात को भी ईश्वर मे चाहा तो मेरा मोर शिवरामतिधारी फाही फिर पहरा होगा । यदि ऐसा न होसका गौर कल रात को अगर फिसली दूसरे कांस्टेबिल का पहरा हुआ, तो शायद तुम्हें फिर सोमा नसीब न होगा। इसलिये अब बेफिक्री के साथ तुम सोयो।

यह सुन गौर उन्हें बार बार असीस देकर मैं लेट गई और