अजीब तमाशा देख कर हमलोगों को तो सकल कूच कर गई! फिर तो देर तक हमलोग सारे घर की देख-भाल करते रहे, पर रसोई घर में एक बुहारी भी बची हुई नहीं दिखलाई दी! यह सब था, पर तिवारीजी की उस नौजवान और कुंवारी लड़की 'दुलारी' का कहीं पता न था! यह सब देख-सुन कर हमलोग उस मकान से बाहर हुए और गोशाला में दुलारी को खोजने लगे, पर वह कहीं भी न मिली। हां, गोशाला की देख-भाल करने पर यह हमलोगों को मालूम होगया कि, 'भूसा ढोने का एक छकड़ा और सारे गाय भैंस भी गायब हैं!!!' बस, हुजूर! यह सब लीला देख-सुन कर तो हमलोग यही समझते हैं कि, 'शायद रात को डाकू आए होंगे!' पर जब दुलारी की चिल्लाहट सुन कर उसकी मदद के लिये कालू, धाना, परसा वगैरह उस मकान में गए होंगे तो डाकुओं से उन सभों को मार डाला होगा और घर के सब सामानों के साथ वे लोग दुलारी को भी पकड़ लेगए होंगे। और साथ ही इसके चीज असबाब ले जाने के लिये बैलों को जोत कर उस छकड़े को भी अपने साथ लेते गए होंगे!' मगर एक बात उस कोठरी में, जिसमें कि धाना इत्यादि कटे पड़े हैं, बड़ी विचित्र देखने में आई! वह यह कि, कालू के मुर्दे के पास एक पानी-भरी मिट्टी की गगरी रक्खी टुई है! इस गगरी के देखने से हुजूर यह बात भली भांति समझलेंगे कि वहां पर वह गगरी लड़ाई-झगड़े के होने के पहले कभी भी न रही होगी, बल्कि बाद को पहुंचाई गई होगी।' तो उस गगरी को इस घर में कौन लेगया, यह बात हमलोग नहीं जानते। फकत इतनाही नहीं, वरन उस कोठरी में, और इस कोठारी के बाहर भी कई एक कदम तक खून से भरे हुए दुलारी के पैर के निशान मौजूद हैं! इससे यह मालूम होता है कि धाना वगैरह के मरने के बाद भी दुलारी इस घर में मौजूद थी! हुजूर दुलारी के पैर के निशान हमलोग अच्छी तरह पहचानते हैं। लेकिन दुलारो के पैर