बाते तो मेरे बयान में आ ही चुकी हैं और उन्हें आपलोग देख भी चुके हैं। फिर अब उन बातों के अलावे नई बात मैं क्या कहूंगी, जिसे आपलोग सुनना चाहते हैं ? "
उन्होंने कहा,--"हाँ, यह सब ठीक है और तुम्हारे इज़हार की पूरी पूरी नकल भी मेरे पास मौजूद है, पर फिर भी एक बार हमलोग तुम्हारी कहानी तुम्हारे ही मुहं से सुनना चाहते हैं । यद्यपि जो इजहार तुमने पुलिस अफसर और मजिष्ट्रट के आगे दिए थे, बिल्कुल यही बयान तुमने जज के आगे भी किया और इस ढंग से किया कि तुम्हारे उन तीनो बयानों में रत्तः भर भी फर्क नहीं पड़ा है ! तो भी इस समय हमलोग तुम्हारा बयान फिर लेना चाहते हैं और यह देखना चाहते हैं कि अब, इस समय के तुम्हारे बयान के साथ तुम्हारे पहिले के बयान किए हुए वे तीनों बयान मिलते हैं, या उनमें और इस समय के बयान में कुछ फर्क पड़ता है।"
यह सुनकर मैने पूछा,--" तो इतनी कोशिश आपलोग क्यों कर रहे हैं ?"
उन्होंने कहा,--" सिर्फ तुम्हारे बयान के लिये।"
मैने पूछा,--"मेरे बयान से आपलोगों को क्या लाभ होगा ?"
उन्होने कहा,--"एक अमूल्य प्राण के बचाने से बढ़कर संसार में और कोई लाभ हुई नहीं।"
यह सुनकर मैने यों कहा,--" किन्तु मैं अपने इस तुच्छ और अधम प्राण के बचाने की कोई आवश्यकता नहीं समझती।"
उन्होंने कहा,--" तुम अभी निरी नादान लड़की हो, तभी ऐसा कह रही हो । सुनो, मनुष्य को चाहिए कि अपने प्राण के बचाने के लिये जहांतक होसके, पूरी पूरी कोशिश करे । यदि उपाय के रहते भी कोई अपने प्राण बचाने का यत्न न करेगा तो उसे निश्चय ही आत्महत्या करने का पाप लगेगा।"