कहकर थानेदार अबदुल्लाखां तो हींगन चौकीदार के साथ उसी औरत की बैलगाड़ी पर सवार होकर दौलतपुर गावं की ओर चले गए और हम दो चौकीदार, यानी मैं (रामदयाल मिश्र) और दियानत हुसेन चौकीदार, उस दुलारी नाम की औरत की चौकसी करने लगे। फिर जब रात को एक इक्के पर चढ़े हुए हींगन चौकीदार के साथ अबदुल्लाखां लौट आए और खाना-वाना खाकर शराब पीने लगे, तब उन्होंगे हींगन को छोड़कर बाकी के हम-सब चौकीदारों को अपने सामने बुलाकर यह हुकुम दिया कि, 'अब तुम-सब अपनी कोठरी में जाकर आराम करो। क्योंकि अब मैं उस कैदी औरत का इजहार लूंगा और उससे उन खूनों को कबूल कराऊंगा। इसमें मुमकिन है कि वह औरत खूब शोर-गुल मचाये! मगर तुमलोग उसकी चीख या चिल्लाहट सुनकर यहां हर्गिज मत आना और अपनी कोठरी में ही रहना। यहां मेरे पास सिर्फ हींगम रहेगा।' बस, थानेदारसाहब का ऐसा हुकुम सुनकर हम-सब चौकीदार अपनी कोठरी में चले गए और आग सुलगाकर बैठे हुए आपस में तरह-तरह की बात-चीत करने लगे। फिर बड़ी देर के बाद जब उसी औरत ने हमलोगों के पास आकर अबदुल्ला और हींगम के खून होने की बात कही, तब हमलोगों ने मारे घबराहट के उस औरत को तो अपनी ही कोठरी में बन्द कर दिया और दौड़े हुए जाकर क्या देखा कि, 'थानेदार-वाली कोठरी में तखत के ऊपर अबदुल्ला का धड़ पड़ा हुआ है, सिर उसका कोठरी की धरती में लुढ़क रहा है, हींगन भी उसी तखत पर मरा हुआ पड़ा है और उसके कलेजे में तलवार भोंकी हुई है!!!' यह अजीब तमाशा देख कर हमलोग बड़े घबरा गए! पर फिर आपस में सलाह करके चार चौकीदारों को तो उस औरत की निगरानी के वास्ते वहीं छोड़ दिया और मैं (रामदयाल) अपने जोड़ीदार कादिरसख्श के साथ उस वार्दात की रिर्पाेट करने यहां हुजूर की खिदमत में आकर हाजिर
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