हुआ। उस औरत (दुलारी) ने तो हम-सभी से यह बात कही है कि, 'मेरे खातिर अबदुल्ला और हींगन आपस में कट मरे हैं!' पर अब हमलोग यह नहीं कह सकते कि असल बात क्या है! यानी, वे दोनो आपस में लड़-झगड़ कर खुद कट मरे हैं, या अपनी इज्जत-आबरू बचाने की नीयत से उस औरत ने ही किसी डर से उन दोनों को मार डाला है! यह बात तो फकत परमेश्वर ही जाम सकता है। हजूर! रसूलपुर थाने पर हम सब आठ चौकीदार थे, जिनमें से 'करीमन' नाम का एक चौकीदार आज पांच दिन हुए, पंद्रह दिन की छुट्टी लेकर अपने घर गया है और हींगम मारा ही गया है। बस, अब हमलोग सिर्फ छः चौकीदार यहां पर हैं। बस, बन्देनेवाज, उन दोनों खूनो के बारे में जो कुछ हमलोग जानते थे, उसकी रिपोर्ट हुजूर की खिदमत में लिखवादी गई।
बस, यहां तक पढ़कर कोतवाल साहब मजिस्टर साहब से फिर यों कहने लगे,—"बस, हुजूर! उन दोनों चौकीदारों के उस बयान के लिख जाने पर उस कागज पर उन दोनों के अंगूठे की छाप लेली गई और इस नई वार्दात की खबर जनाब सुपरिन्टेन्डेन्ट साहब बहादुर को फोरम टेलीफोन के जरिये दी गई। उस खबर के पाते हो वे फौरन कोतवाली में आए और रामदयाल और कादिर बख्श के उस बयान की तसदीफ कर उस पर खुद दस्तखत करके मुझसे भी उस पर सही करा ली। फिर हमलोग गाड़ियों पर सवार होकर रसूलपुर गांव पहुंचे और रामदयाल की बतलाई हुई कोठरी में हमलोगों में उस औरत को बन्द पाया। वह उस कोठरी का दरवाजा अन्दर से बन्द करके जंगलेदार खिड़की के आगे बैठी हुई थी, पर साहब बहादुर के कहने से फौरम वह उठी और कुण्डी खोलकर उस कोठरी से बाहर हुई। तब साहब बहादुर के हुकुम से मैंने उसके हाथों में हथकड़ी भर दी। इसके बाद साहब बहादुर के हुकुम से सउगे अपना वो बयान