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खूनी औरत का


यहां पर लिखवाया था, वह मेरे पास मौजूद है। इस कागज पर उस औरत के अंगूठे के निशान हैं और साहब बहादुर व मेरी भी सही है! सिर्फ इतना ही नहीं, बल्फि उस कागज पर वहांके मौजूदा छऔं चौकीदारों के अंगूठे के भी निशान साहब बहादुर ने करा लिए हैं। उन छओं मौजूदा चौकीदारों के नाम ये हैं,— (१) रामदयाल मिसिर, (२) दियानत हुसेन, (३) कादिर बख्श, (४) मन्नन दुबे, (५) गजाधर पांडे, (६) मातादीन तिवारी। इन छओं के अलावे वह सातवां चौकीदार करीमन छुट्टी लेकर अपने घर गया हुआ है। भाठवां चौकीदार हींगन मारा ही गया है। बस, इस तरह उस गांव पर कुल आठ चौकीदार थे, जिनमें से इस वक्त वहां पर छः चौकीदार मौजूद हैं और अबदुल्ला थानेदार की जगह पर कानपुर की कोतवाली से मदारीलाल नाम का एक हेड जमादार, जो पढ़ा लिखा हुआ भी हैं, तब तक के लिये वहाँ भेज दिया गया है, जब तक कि कोई दूसरा इन्तजाम न होवे।"

बस, यहां तक पढ़कर जब कोतवाल साहब चुप हुए, तब मजिस्टर साहब ने उनसे कहा,—"अच्छा, भब इस औरत यानी दुलारी के उस इज़हार को पढ़िए, जो इसने रसूलपुर के थागे पर दिया था।

यह सुनकर कोतवाल साहब मेरे दिए हुए इस बयान का बयान करने लगे और हाकिम ध्यान से उसे सुनने लगे।

यों कहकर मैने भाई दयालसिंहजी की ओर देखकर यों कहा,—"क्याें, महोदय! क्या रसूलपुर गांव में दिए हुए अपने इजहार को मैं फिर दुबारे सुना जाऊं?"

यह सुनकर भाई दयालसिंहजी के बदले वे साहब बहादुर, जो भाई दयालसिंह और बारिस्टर साहब के बीच में बैठे हुए मेरा इजहार लिख रहे थे, मेरी ओर देखकर यों बोले,—"नईं, डुलारी! उस इजहार का बाट टुम अपाना रसूलपुर का हाल कहने का