पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१२७

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सात खून । ( १२३ ) बकर बाल गया है । इस बाशटे अय डुबारा उस पाट का फहने का कोई जरूगई है।" ____इस पर मैंने फिर यो पूछा,-" खैर, तो मेरे रसूलपुर गांव में दिप हुए इजहार के पढ़ने के बाद कोतवाल साहब ने वहांक चौकीदार रामदयाल वगैरह के इजहार को पढ़कर हाफिम को सुनाया था। इस इजहार की बात भी मैं आपके सामने अपनी कहानी के सिलसिले में सुना गई है, इसलिये अब उसके लिये क्या हुकुम होता है ? " (१) - साहब बहादुर ने इस पर यों कहा,-"ठीक पार है, भष पश इजहार के शुनाने का कोई काम नई है । इश पाशटे अप टुम सपाना यह इजहार सुनाओं, जो कानपुर की कोरवाली में कोटवाल साहब का मागे शिया ठा।" में यह सुनकर मैगे कहा,-" साहब, मैने कोतवाल साहब के आगे, कोतवाली में माने पर अपना कोई इजहार नहीं लिखाया था । बलिक उन्होंगे जो एफ फोरे फागज पर जबरदस्ती मेरे अगूठे का निशान ले लिया था, उस पर अपगे मन-मामता मेरा बयान खुद लिख लिया था । यह पात मैं भभी भाग भागे कह - साहब गे कहा,-"हां, ठीक बार है, अच्छा, भष टुम वही बयान पोलो।" इस पर-"बहुत अच्छा"-कहकर मैगे यों कहा,-"महोदय, इस प्रकार जप कोतवाल साहब मेरे रसूलपुर गांव में दिए हुए, रजहार और उसके बाद रामदयाल इत्यादि चौकीदारों के दिए हुए, बयान को पढ़ चुके, तब उन्होंगे हाकिम के कहने से यह फागज पढ़मा प्रारम्भ किया, जिस पर मेरे अंगूठे की छाप बरजोरी लेली गई थी गौर जिसमें कोतवाल साहब में गपणे मन-मागता मजमूग. (१) सोलहवां परिच्छेद देखो।