पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१२९

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। सात स्थून (१२५) vvvvvvvvvvvvvvvvvve जोर से उसका गला भींचा कि वह आखिर मर हो गया ! जब मैंने इस बात का यकीन कर लिया कि, अब यह कम्बख्त मर गया होगा, उसके गले को छोड़ कर हरू की छाती पर से हटी। . फिर दोया लेकर जब मै अच्छी तरह से उसे देखा तो सचमुच मुरदा पाया! यह देख और दीया आले पर रख कर मैं उस कोठरी से बाहर हुई और एफ दूसरो कोठरी में जाकर टहलने लगी। उस समय मुझे ऐसा जाग पड़ा, मानो मेरे घर में कई भादमी घुसे हुए मापस में कुछ कानाफूली कर रहे हैं ! यह जान कर मैं जरा डर गाई, पर फिर तुरंत ही मैंने अपना जी कड़ा कर और अपने हरघाहों का नाम लेकर उन्हें पुकारना शुरू किया। मेरे चार हरषाहे थे और का नाम यह था,-(१) फलगू, (२) ढोंढा, (३) घोंघा, (४) कालू । मम, इन्हीं चारों का नाम लेकर बार-बार मैं पुकारने लगी। उस समय तो मेरी पुकार पर कोई न बोला, पर थोड़ी ही देर में चार आदमियों में मेरी कोठरी में आकर मुझे घेर लिया और मुझसे बहुत ही गन्दी-गन्दी बातें करनी शुरू की। यह रंग- डंग देख कर पहिले तेा मैं बहुत ही डर गई, पर फिर कुछ सास-साथ फर मैंने अपने जी को पढ़ा किया और उग सभोले यों कहा,- 'गच्छा, तुम सभों की बातें मुझे मंजूर हैं। इसलिये तुम-सभों में से तोन हामी तो यहीं रहो और एक मेरे साथ दूसरी कोठरी में चलो।' यह सुन कर छग चारों पापियों में से तीन तो सी. कोठरी में ठहरे रहे और चौथा, जिसका नाम धाना था, मेरे साथ हुगा । उसे मैं रसोई घर में ले गई । वहां जाकर मैने अपने पाप की तल्वार, जो मेरे पास थी, हाथ में लेकर इस जोर से उसकी गर्दन पर मारी कि वह बिना "चं" किए ही रुण्ड-मुण्ड' होकर धरती में गिर गया । यह हाल देख कर एक बेर तो मैं कांप उठी, पर फिर धीरे धीरे अपने जी की धड़कन दूर फर और कुछ देर ठहर फर मैने वहीं से परसा को भावाज दी । मेरी पुकार सुनतेही