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खूनी औरत का


वह तुरत उस कोठरी के दरवाजे पर आया और कोठरी में अंधेरा देखकर बोला,—'दीया बुझा दिया था?' इस पर मैने "हां" कहा। इस पर फिर वह बोला,—'धाना कहां गया?' इसका मैंने यो जवाब दिया कि, 'वह बाहर गया है। बस, अब तुम जल्द भीतर आओ और अपना काम कर के बाहर चले जाओ।' मेरी ऐसी बात सुनकर वह उस कोठरी के अन्दर ज्योंहीं घुसा, त्योंही मैने उसे भी एक ही हाथ में दो टूक करके जमीन में गिरा दिया। बस, दो-दो आदमियों को काटकर फिर तो मैं पूरी-पूरी निडर होगई गौर छिन भर ठहर कर फिर मैगे गब्बू को आवाज दी। मेरी आवाज सुनकर वह उठ दौड़ा और इस तेजी के साथ मेरी कोठरी में घुसा कि उसके कलेजे में तलवार घुसेड़ते मुझे जरा भी देर न लगी। देर तो न लगी, पर कलेजे में तलवार घुसेड़ कर मैने अच्छा काम नहीं किया था। इस बात का मतलब यह है कि तल्वार भोंकी जाने पर वह इतने जोर से चीख मार उठा कि उसे सुनकर कालू तुरत मेरी कोठरी की ओर यों चिल्लाता हुआ दौड़ा कि, "क्या हुआ, कैसा हुआ!!!" पर कोठरी के अन्दर घुसते घुसते उस पर भी मैने तल्वार का वार किया और वह घायल होकर—"दगा-दगा"—कहता हुआ धरती में गिरकर छटपटाने और बार बार पानी मांगने लगा। यह सुनकर मैंने उस कोठरी में दीया बालकर उजाला किया और बाहर से पानी की कलसी लाकर कालू को कुछ थोड़ा सा जल पिलाया। थोड़ी ही देर में जब वह मर गया, तब मैं अपने घर से बाहर हुई। बाहर निकलते ही अपने घर के द्वार पर मैंने अपनी बैलगाली जुती हुई तयार देखी, जिसमें मेरे ही दो बैल जुत रहे थे। यह देखकर मैं इस पर संचार हुई और रसूलपुर गांव की भोर चली। मेरे गांव का थाना जल गया था, इसलिये मैं रसूलपुर की ओर चली। मैं उस समय, चाहे जिधर, भाग सकती थो, पर यह सोचकर कहीं न भागकर