पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१३१

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। सात स्थून (१२७) w wvvvvon INDORREE लोधी थाने पर पहुंची कि, अगर भाग जाऊंगी, तो मैं ही इम खूनों के करगंधाली मगझी जाऊंगी, पर जो मैं खुद इस बात की रिपोर्ट लिखाऊंगी, तो शायद बेदाग बच जाऊगी।' बस, यही सब सीम-पांच सोचकर मैं रसूलपुर गांव की भोर चली. और पहर डेढ़ पर दिन बढ़ते-बढ़ते रसूलपुर के थागे पर जा पहुंची। यह माफर मैने वहां के थाणेदार के भागे अषमा उसी ढंग का बयान कहा, जिम ढध का कि वहां पर दूसरे दिन एक अंगरेज अफसर गौर कोतवास के आगे लिखाया था। बस, मेरा बयान सुनकर- लिख कर नहीं, फकत सुनकर- इस धागेदार गे मुझे एक कोठरी में इन्द फर के असमें ताला लगा दिया और आप एक चौकीदार को साथ कर मेरे गांव की भोर मेरे घर में हुए खूनों की तहकीकात करने मेरी ही थैलगाड़ी पर लघार होकर चला गया। उसके आने पर जो चौकीदार मेरे पहरे पर मुकर्रर हुए थे, हममें से किसीने म तो मुझे कुछ खिलाया-पिलाया ही था, और न किसी तरह की कोई बात चीत ही की थी । उनकारे में अम का नाम लेकर धंगरेज अफसर के सामने जो कुछ मैंने अपने बयान में लिन बाया है, यह बिलकुल झूठ है । इल के बाद अब मैं कानपुर की कोतवाली में लाई गई, तो वहां के कोतवाल साहश बड़ी भलमन्सी से मेरे साथ पेश भाए और बहुत ही माराम के साथ उन्होंगे मुझे एका कोडरी में रखा । मुझे शाम के हाथ का बनाया हुभा मागे को दिया और किसी तरह की भी तकलीफ न होगे दी। उसकी ऐसी शराफत देख कर मैं बहुत ही खुश हुई और माग ही माप एक दिन मैंगे इन सातो खूगों का सपा-सचा हाल इन्हें लिखवाकर इस कागज पर भगे अंगूठे की गिशानी कर दी। मैं पढ़ी लिखी नहीं है, इसलिये भंगूठे का निशान करती है। खैर, तो पांच खूनों का हाल तो मैं ऊपर कह पाई हूँ, भव दो का हाल गौर फरफर गपने बयाम को पूरा करूंगी। बात यह है कि अब रात को रसूलपुर का