सात खून। (१२६ ) - 'यहा भागना ठीक न होगा।' यो सोचकर मैं उस कोठरी से शाहर हुई और बस फोठरी के पास पहुंची, जिसमें रामदयाल बगैर जमों चौकीदार हुए बाग साप रहे थे। मुझे अपनी कोठरी के दरवाजे पर देख मौर मेरी अचानी अबदुल्ला और हींगन के मारे जाने की बात सुनकर मे सथ इस कदर घसरा उठे कि, बस पर मुझे शसी ( अपनी ) कोडरी में बन्द करके सब कै सब छोड़ते हुए अबदुल्ला की कोठरी की ओर गए । इसके बाद उस रात को मुझे मिली चौकीदार ने न छेड़ा और मैं भी उसकोठी की कुण्डो भीतर से बन्छ करके बही पर पड़ी हुई एक वारपाई पर पक्षकार सो गई । वह अब दियामतहुसेम नाम के चौकीदार में मुझे जगाथा, सब मेरो मोव खुकी और मैं चारपाई पर से उठकर इसी कोडरी में की एण्ड खिसकी के भागे एक मुड़ा रखकर उसी पर बैठ गई। थोड़ी देर के बाद मैने एक भरी हुई चन्दक और एक सल्वार लेकर बने मूढ़े के अगल-बगल साड़ी कर ली थी। कुछ दिन निकलने पर आप एक अंगरेज अफसर ने मेरी कोठरी के मागे माफर मुझे कुण्डो खोसकर बाहर निकलने को कहा, तथ मैं थाहर निचली और लिपालते ही मेरे हाथों में कामपुर के कोतवाल साहब ने हथकड़ी भर दी । इसके बाद सम साहच महातुर मेरा बपाम खिया, जिसरी कोसबाड साहष गे लिखा । बह बयान मैंने डीकमही किमयाया था, इसलिये कानपुर की कोतवाली में भामे पर अपनी रजामन्दी से मैने यह बयान कोसशाल साहब को सही साली लिखा दिया और इस पर भपने अंगूठे को छापमा कर दी। यो कहकर सत्यवत कोतवाल साहब ने उस बादामी रंग के कागजों को पेशकार के हाथ में दे दिया और यों कहा कि,-" इन कागजों में इन खूनों की पूरी पूरी सहकी कात को कुल कार्रवाई दर्ज हैं, और यह खूनी औरत सात खून करने के जुर्म में हुजूर के रू-ब-रूपेश है।"