पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१३४

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(१३०) खूमी भारत का - wwwvvvvvvvvvvm बीसवां परिच्छेद । जेल में! । । "धेन पौष भोक्तव्यं सुखं वा दुःख मेव वा । " स तत्र पध्वा रज्षेव पला वेन नोयते ॥ (व्यास) हे परमेश्वर ! कोतवाल साहब की यह अद्भुत लीला देख कर मै तो भैषक सी रह गई ! पर तुरत ही मैंने भगवती का स्मरण करके मजिष्टर साहब की भोर देख कर यों कहा,-"हुजूर, मुझ मनाथ की भी एक भरज सुन-- --- " अरररररर ! ! ! इतना सुनते ही हाकिम ने मुझे बड़े जोर से सं यताई भौर यों कहा,-" तुम अभी चुप रहो। जच तुमसे पू जाय, सब बोलना ।" पह सुन कर फिर मैं कुछ न शोली और उसको बांध और काग खड़े करके गदालत की कार्रवाई देखगे-सुनगे लगी। उस समय वह पड़ा कमरा भादमियों के मारे भर उठा था गौर इसके अन्दर जितने लोग थे,धे भी मेरी भोर एक अनोखी दृष्टि से देख रहे थे! मैंने देखा कि सस भीड़ में काला और नासा.सा एक काना मौषमी भी था, जो काले रंग का चोगा पहिरे,सिर पर शमला धरे नौरमाकपर चश्मा लगाए,गजवतरह से मेरी ओर निहार रहा था !! मस्त, यह सब देख-सुम फर मैं हाकिम की मार देखने और भगवती का स्मरण करने लगी। इस कमरे में बड़ी भीड़ इकट्ठी होगई थी, इसलिये हाकिम अपने मरलियों को यह हुकम दिया कि,-" वकील-मुखतारों को छोड़कर बाकी के सष भादमियों को बाहर निकाल दो।" हाकिम के मुहं से इतना मिलते ही उस कमरे से "भर-भरी- 'मोग निकसमे भौर भागने बगे और भरवलियों को विशेष कष्ट