( १३२) खूनी औरत का MAnnnnnnnnARArvin/ SHARE SHREE FIERSIR दूसरे दिन मुझे मी बजे के ममय सेर भर का दूध दिया गया, जिसे मैं पीगई गौर इसके बाद गाड़ी पर खपार कराई आकर कचहरी पहुंचाई गई। लेकिन इस दिन भी कोई विशेष बात नहीं हुई। पोंकि एक तो हाकिम ही कुछ देर करके भाए थे। दूसरे ये बई और भावश्यक कामों से खाली हुप, तप में उनके सामने पेश की गई। उस समय मुझे कोतवाल साहष के पेश किए हुए सप फागम फिर को मुमा दिए गए और मुझसे यों कहा गया,-"भव तुम अपना बयान लिखधागो।" यह शुभफर मैने नपमा यही बपाम-यही सचा बयान.- लिखपाया,जो रसूलपुर के थाने पर एक अंगरेज अफसर के सामने लिबचाया था। इसके बाद मैने हाकिम की मोर देख और बहुतही गिड़गिड़ा कर यों कहा कि,-"धर्मावतार ! जिस कागज पर मेरे अंगूठेका मिशाम है, इस कोरे कागज पर कोतवाल साहब में परजोरी मेरे भंगूठे की छापलेली थी और पीछे उस सादे कागज पर अपने मन-मामता पयाम लिख मारा है। इसलिये यह मेग लिखाया हुआ बयान कभी नहीं है और यह बिलकुल झूठ है । मेरा पही पान सञ्चा है, झिसे मैंने पुलिस एफ साह के सामने ) रसूलपुर के थाने पर सिधाया था । बस, जो कुछ मैंने अपने इस बयान में कहा था, यही बात मैने माअ हजूर के सामने भी कही इसलिये मुल दुनिया-मभागी की यही अरज है कि मेरा दिया हुमा बयान ही सवा समझा जाय मौर मुझे बेकसूर समझकर छोड़ दिया जाय।" इस पर हाकिम में कुछ न कहा और मुझे फिर दूसरे दिन हाजिर करने का हुक्म देकर वे बठकर चले गए। ___मैं फिर मी पहिले दिन की भांति जेल पहुंचाई गई और फिर बदस्तूर तीसरे दिन हाफिग के आगे हाजिर की गई।