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खूनी औरत का


दूसरे दिन मुझे नौ बजे के समय सेर भर कच्चा दूध दिया गया, जिसे मैं पीगई और उसके बाद गाड़ी पर सवार कराई जाकर कचहरी पहुंचाई गई।

लेकिन उस दिन भी कोई विशेष बात नहीं हुई। क्योंकि एक तो हाकिम ही कुछ देर करके आए थे। दूसरे जब ये कई और आवश्यक कामों से खाली हुए, तब में उनके सामने पेश की गई।

उस समय मुझे कोतवाल साहब के पेश किए हुए सब कागज फिर से सुना दिए गए और मुझसे यों कहा गया,—"अब तुम अपना बयान लिखवाओ।"

यह सुनकर मैंने अपना यही बयान—वही सच्चा बयान—लिखवाया, जो रसूलपुर के थाने पर एक अंगरेज अफसर के सामने लिखवाया था। इसके बाद मैंने हाकिम की ओर देख और बहुतही गिड़गिड़ा कर यों कहा कि,—"धर्मावतार! जिस कागज पर मेरे अंगूठे का निशाम है, उस कोरे कागज पर कोतवाल साहब ने बरजोरी मेरे अंगूठे की छाप लेली थी और पीछे उस सादे कागज पर अपने-मन-मामता बयान लिख मारा है। इसलिये यह मेरा लिखाया हुआ बयान कभी नहीं है और यह बिलकुल झूठ है। मेरा वही बयान सच्चा है, जिसे मैंने पुलिस के एक साहब के सामने रसूलपुर के थाने पर लिखवाया था। बस, जो कुछ मैंने अपने उस बयान में कहा था, यही बात मैंने आज हजूर के सामने भी कही हैं; इसलिये मुझ दुखिया-अभागी की यही अरज है कि मेरा दिया हुआ बयान ही सच्चा समझा जाय और मुझे बेकसूर समझकर छोड़ दिया जाय।"

इस पर हाकिम में कुछ न कहा और मुझे फिर दूसरे दिन हाजिर करने का हुक्म देकर वे उठकर चले गए।

मैं फिर मी पहिले दिन की भांति जेल पहुंचाई गई और फिर बदस्तूर तीसरे दिन हाकिम के आगे हाजिर की गई।