पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१४८

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(१४४) खूनी औरत का कम्पल ले आओ।" यह सुनकर वे दोनों बड़ी मैंगन हुई और दौडी हुई जाकर अपने ओढ़ने बिछाने के कंबल उठा लाई। उनके आने पर जेलर साहब मे उनसे पूछा,-" तुम दोनों खा-पी चुकी हो न?" ___ इस पर उन दोनों ने-"हां" कहा । तब जेलर साहब ने उन दोनों को मेरी कोठरी के भीतर करके उसके दरवाजे में ताला लगा,दिया. और उन दोनों से कहा,-" दुलारी की तुम दोनों खिदमत करना।" उस समय मेरी कोठरी के आगे वाले बरामदे में लटकती हुई लालटेन जलादी गई थी और रतन कांस्टेबिल के बदले में दूसरा सिपाही पाकर कन्धे पर वन्दूक धरे हुए बाहर टहलने लग गया था।" उस कांस्टेबिल की तरफ देखकर जेलर साहब ने यों कहा,- "बुझावन सिंह, देखना, इस लड़की दुलारी को तुम टोकना- श्रोकना मत, क्योंकि यह अपनी इन दोनों हम उम् कहारियों से बात चीत करके अपना जी बहलावगी। और सुनो, जब तुम्हारा पहरा बदले, तब यही बात तुम अपने जोड़ीदार को भी समझा > SENT MAR देना।" . - यो कहकर जेलर साहब ने मेरी कोठरी के ताले की ताली 'वुझावनसिंह के हाथ में देकर फिर यों कहा,-" लो इस ताली को तुम अपने पास रक्खो । अगर इन सबों को रात के बक्त कुछ ज़रूरत पड़े तो तुम ताला खोलकर इन्हें कोठरी से बाहर निकलने देना और यही बात अपने जोडीदार से भी ताली देकर समझा देना।" - यह सुन और ताली लेकर बुझावनसिंह ने कहा,-"बहुत अच्छा, हुजूर ! ऐसाही किया जायगा।,