आप दुलारी को अकेली न छोड़ दीजिवेगा।" बस, अब तुम परमात्मा को धन्यवाद दो।"
इतना कहकर जेलर साहब चले गये और मैंने हाथ जोड़ तथा सीस नवाकर भगवान की मन ही मन स्तुति की। इसके बाद मैंने उठकर पुन्नी और मुन्नी को गले लगाया और कहा,—"अब तुम दोनों मेरे जीवन की साथिन हुई। परमात्मा की माहिमा का कौन पार पा सकता है कि उसने तुम्हारे ही छुटकारे के दिन मुझे भी इस जेल—नहीं नहीं, फांसी से भी छुट्टी दी।"
इतना कहते कहते मेरी आंखों से आंसू चल रहे थे, जिन्हें पुन्नी और मुन्नी ने पोंछा और उनके आंसुओं को मैंने। फिर हम सबों ने ज़रूरी कामों से निपट और नहा धोकर कुछ देर तक भगवान का भजन गाया। फिर पुन्नी और मुन्नी खाने चली गई और मैंने भी सदा की भांति दूध पीया।
जब पुन्नी और मुन्नी आगई, तब उन दोनों के साथ मैंने धीरे धीरे भगवान का भजन गाना प्रारम्भ किया। क्योंकि जेल की यह आखिरी रात थी, इसलिये जागरण कर और भजन गाकर इसे बिताना हम लोगों ने ठीक समझा।
आज मेरी कोठरी का ताला खोल दिया गया था और बेचारा पहरे वाला भी नहीं दिखाई देता था, शायद वह कहीं दूर पर रह कर पहरा देता होगा! इसलिये निराले में हम सबों की जागरण करने और भजन गाने का खूबही मौका मिला।
बड़े तड़के, पांच बजे के पहिले ही, हम तीनों नहाने धोने आदि से छुट्टी पाकर अपने छुटकारे के समय का आसरा देखने लग गई थीं।