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पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/५

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( ३ )
सात खून।


हाईकोर्ट का अखीर फैसला न हो लेगा, तब तक फांसी नहीं दी जायगी।"

जेलर साहब की यह बात सुन कर मैं बहुत ही चकित हुई और उनसे यों कहने लगी कि,—"क्यों साहब, मैने तो अबतक किसी भी वकील-बारिष्टर को अपने मुकद्दमें की पैरवी के लिये नहीं खड़ा किया था और अदालत के कहने पर भी वैसा कोई प्रबन्ध नही किया था; वैसी अवस्था में फिर मेरी ओर से किस बारिष्टर ने हाईकोर्ट में अपील दायर की है?"

यह सुन कर जेलर साहब ने कहा,—"जिस बैरिष्टर ने तुम्हारी तरफ से अपील दायर की है, वह आज दोपहर को तुमसे खुद आकर मिलेगा। बस, उसी की जवानी तुमको सारी बातें मालूम हो जायंगी।"

यों कहकर जेलर साहब एक ओर चले गए और मैं मन ही मन यों सोचने लगी कि,—"अरे, मुझ अभागिन के लिये परमेश्वर ने किसे खड़ा किया, जो मेरे लिए आप ही आप उठ खड़ा हुआ!!! मजिष्टर साहब के सामने जब मैं पहुंचाई गई थी, तब मैंने यह देखा था कि सैंकड़ों वकील-मुख़तार मेरे मुकद्दमे का तमाशा तो खड़े देख रहे थे, पर मेरे लिये किसी माई के लाल ने भी दो बोल नहीं कहे। यहांतक कि हाकिम ने मुझसे यों कहा था कि,—"यदि तू चाहे तो अपने पक्षसमर्थन कराने के लिये किसी वकील-मुख़तार को अपनी ओर से खड़ा कर ले।" परन्तु मैंने यों कहकर इस बात को अस्वीकार किया था कि,—"नहीं, इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। क्योंकि मुझे झूठ नहीं बोलना है; और जो कुछ सच्ची बात है, उसे मैंने कही दिया है; ऐसी अवस्था में फिर मुझे वकील मुखतारों की कोई आवश्यकता नहीं है।"

यही बात जजी में भी हुई थी, अर्थात् वहां पर भी सैकड़ों वकील बारिष्टर मेरे मुकद्दमे का तमाशा ही देख हे थे, पर मेरे पक्ष