सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ४५ )
सात खून।


कूदने लगे और पारी पारी से बार बार सभी जने यों कहने लगे कि,--"नहीं, प्यारी, दुलारी ! अब हम चार यारों के अलावे पांचवां कोई भी साला तुम्हारी परछाई भी नहीं छ सकेगा।

यह सुन कर मैं मन ही मन बहुत ही प्रसन्न हुई; क्योंकि उन बारह बदमाशों में से एक हिरवा तो मर ही चुका था, और सात उस समय भागे हुए थे। बस, अब उन चार दुष्टों से ही मुझे अपना पल्ला छुड़ाना था। सो, जब मैने यह देखा कि मेरे सफमे का असर इन पाजियों पर हो रहा है, तब मैने मन ही मन भगवान् को प्रणाम करके अपने छुटकारे का यह उपाय सोचा कि यदि हम चारों में से तीन शैतान किसी तरह और अलग किए जा सकें, तो फिर मैं कालू को समझ लंगी। क्योंकि वह (काल) मेरे यहां तीन चार परस से रह रहा था, इसलिये उसके स्वभाव से मैं खूब अच्छी तरह जानकार हाचुकी थी। वह बड़ा ताफतवर और पूरा उजड्ड था, और उस अफेले को चकमे में डाल कर मुझे अपने को यथा लेना कुछ कठिन काम न था। बस, यही सब सोचमाचकर फिर तो मैने स्त्रियों के स्वाभाविक अस्त्रशस्त्रों की थोड़ी सी वर्षा करनी प्रारम्भ की और बहुत ही धीरे से, जिसमें कि वे तीनों न सुन सके, कालू के कान में इतना, ही कहा कि,-" अब जरा इन तीनों को यहांसे हटा दी, ता मैं तुमसे कुछ कहूं।"

यद्यपि मेरी बाते ता वे तीनो न सुन सके, पर, "कालू के कान में जो मैंने कुछ कहा, इसे देखकर वे तीनो के तीनो कालू से बार बार यों पूछने लगे कि, "दुलारी ने तुमसे अभी हौले हौले क्या कहा ? देखो माई, जो कुछ इसने तुम्हारे कान में कहा हो, उसे हमलोगों पर भी प्रगट करदो, क्योंकि हम चार यारों में अब परस्पर कुछ भी छिपाष न रहना चाहिए ।

कालू में इन तीनों की बातें सुनकर उन ( तीनों ) से एक ऐसी विचित्र बात कही कि जिसे सुनकर मैं तो दङ्ग रह गई !