कलेजा पोढ़ा करके उठी और एक मिट्टी की जल-भरी गगरी उठाकर रसोई-घर में पहुंची।
वहां जाकर मैने क्या देखा कि, 'धाना और परसा के तो सिर धड़ से अलग होगए हैं, गौर नब्बू के कलेजे में तलवार घुसेड़ी हुई है ! सारी कोठरी में खून बह रहा है और एक मार कालू भो घायल होकर पड़ा पड़ा कराह रहा है ! ! !'
यह सब हत्याकाण्ड देखकर उस समय मेरे चित्त की क्या अवस्था हुई होगी, इसे तो केवल नारायण ही जान सकते हैं! इसलिये उसका बखान न करके मैं अब आगे का हाल कहती हूँ।।
मुझे देखते ही कालू ने कहा,--"दुलारी, जल्दी मुझे पामी पिलाओ।"
बस, जब यह पात मेरे कान में पड़ी, तब मानो सोते से मैं जागी और मैने नजर गड़ाकर क्या देखा कि, 'कालू के कंधे का तल्वार मे दूर तक काट दिया है और वह धर्ती में पड़ा पड़ा तड़प
मैं उसको उस अवस्था को देखकर यह बात भली भांति समझ गई कि, 'अब यह भी थोड़ो ही देर का पाहुना है।' अस्तु, फिर तो मैने हाथ में पानी लेकर उसके मुह में धीरे धीरे डाला, जिसे वह बड़े कष्ट से पी गया।
थोड़ा सा पानी पी कर जब वह कुछ स्वस्थ हुना, तब मेरी ओर देखकर यों कहने लगा,--"दुलारी, तुम्हारी खातिर मैने अपने तीनों साथियों को मार डाला, पर नब्बू साला मरते मरते मुझे भी आखिर मार ही गया! अब मैं चलता हूं इसलिये मेरे अपराधों को तुम क्षमा करना । तुम यहांसे अप अपनी जान लेफर तुरन्त कहीं भाग जाना और पुलिस के हंगामें से अपने तई खूष बचाना। अगर तुम कहीं भाग न गईं तो जरूर पकड़ी जाओगी और इन पांच-पांच खूनों के कसर में फांसी पड़ोगी।"