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पृष्ठ:गर्भ-रण्डा-रहस्य.djvu/१५

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गर्भ-रण्डा-रहस्य।

(११)


बोला बटुक लबार, तोड़ गड़बड़ की लंका।
क्यों बलहीन असार, वृथा उपजी यह शंका॥
जड़ वर शालिग्राम, बधू तुलसी चेतन है।
क्या अब उनका ब्याह, कराना पागलपन है॥

(१२)


प्रतिमा पूज प्रसन्न, सुरों को कर सकते हैं।
क्या दुलहिन के ठौर, न गुड़िया धर सकते हैं॥
पर पिण्डोदक आदि, पितर हम से पाते हैं।
इस प्रकार से अन्य, अन्य मुख बन जाते हैं॥

(१३)


इस विधि से संदेह, दूर कर रङ्ग जमाया।
मा ने उस बकवाद, पोच पर ज्ञान गमाया॥
पूछा वर नवजात, कहो किस भाँति मिलेगा।
हँसकर बोला सिद्ध, सुनोइस भाँति मिलेगा॥

(१४)


कल ही एक कुलीन, कुमर ने जन्म लिया है।
विकट ग्रहों ने घेर, निपट अल्पायु किया है॥
वह बालक दो बार, बिता कर मर जावेगा।
पर विवाह का काम, सिद्ध सब कर जावेगा॥