पृष्ठ:गर्भ-रण्डा-रहस्य.djvu/१६

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गर्भ-रण्डा-रहस्य।

(१५)


उस लड़के का बाप, बुरा फल जान चुका है।
परख मुझे दैवज्ञ, शिरोमणि मानचुका है॥
यदि पूछो ग्रह-दोष, दान जप से हटता है।
हटता है, पर पाप, न निर्धन का कटता है॥

(१६)


यदि समझो मा-बाप, न अपना बालक देंगे।
देंगे, पर धनहीन, दीन तुम से कुछ लेंगे॥
इस का ठीक प्रबन्ध, दाम दे कर करदूँगा।
जाकर उन के हाथ, ठनाठन से भरदूँगा।

(१७)


करदो सुखदारम्भ, भूल से दुःख न सहना।
श्रेयस्कर सदुपाय, प्राणवल्लभ से कहना॥
यों प्रपञ्च रच पोच, कड़ा कर मा के डर को।
लेकर सौ कलदार, सिधारा अपने घर को॥

(१८)


मुझ दुखिया का बाप, रात को घर पर आया।
मा ने अवसर पाय, रची इस ढब से माया॥
स्वामी! कुलरिपुरूप, दुरर्भक पेट पड़ा है।
जिस का जन्म जघन्य, आप को बहुत कड़ा है॥