पृष्ठ:गर्भ-रण्डा-रहस्य.djvu/२१

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गर्भ-रण्डा-रहस्य।

(३५)


यों मिट गया विवाद, किसी का कोप न भड़का।
गुड़िया का भरतार, बना पुड़िया का लड़का॥
पुड़िया पटकी फाड़, टाँड पै गुड़िया धरदी।
इस प्रकार से राँड, उदर ही में मैं करदी।

(३६)


ठग सोचा यदि राम, न इस ने लड़की जाई।
तो बस बिगड़ी बात, प्रकट यों टेक टिकाई॥
जो दुलहिन का जीव, उड़ा दुलहा से अड़का।
तो तुम लड़की छोड़, जनोगी सुन्दर लड़का॥

(३७)


बोले युगल उलूक, लमक लालच के मारे।
धन्य धन्य गुरु देव, वचन बढ़िया उच्चारे॥
यह प्रलाप प्राचीन, नहीं पड़ गया नवीनों।
प्रचुर दक्षिणा पाय, पाय सटके शठ तीनों॥

(३८)


मैं नव मास बिताय, विकल जननी ने जाई।
सुन कर मेरा जन्म, उदासी पितु पर छाई॥
दिया न कुछ भी दान, न मङ्गल-मान कराया।
हुआ न उत्सव होम, न विधि से नाम धराया॥