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गर्भ-रण्डा-रहस्य।
(३९)
क्रम से बढ़ी निदान, हुई में सात बरस की।
सुनने लगी प्रसङ्ग, कहानी श्यामल*[१] रस की॥
ललनागण के गूढ़, विचित्र चरित्र निहारे।
जगमोहन†[२] के गीत, लगे मुझ को अति प्यारे॥
(४०)
देख मुझे कर प्यार, जनक ने बात चलाई।
बिटिया के अनुरूप, खोज वर करें सगाई॥
सागरमल का पुत्र, "सुबोध्" बड़ा सुन्दर है।
उत्तम कुल विख्यात, जतीला बढ़िया घर है॥
(४१)
मा सुन उठी पुकार, ननद विधवा है मेरी।
जो पति को दिन रात, तरसती है बहुतेरी॥
उस का पुनर्विवाह, किसी धग्गड़ से करदो।
पर दुहिता को देव, दूसरी बार न वरदो॥
(४२)
सुन कर बोला बाप, अरी यों क्या बकती है।
लड़की बिना विवाह, राँड कब हो सकती है॥
जिस कपटी की बात, कुमति में भर छोड़ी है।
क्या उस के अनुसार, अकरनी कर छोड़ी है॥