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गर्भ-रण्डा-रहस्य।

(४७)


जिस को दुर्जन-तोष,—न्याय विधवा करदेगा।
उस को अक्षत-योनि,—वाद फिर भी वर देगा॥
विधि से वर इक्कीस, मिले दिव्या दुलहिन को।
जटिला के पति सात, बने बतलादूँ इन को॥

(४८)


कन्या*[१] परम पवित्र, पाँच सब जान रहे हैं।
ऐसे विविध प्रसङ्ग, सुबोध बखान रहे हैं॥
पर ये ऊत अजान, भला कब कान धरेंगे।
अधम नारकी नीच, न उत्तम काम करेंगे॥

(४९)


विधवा दल के शत्रु, जार व्यभिचार प्रचारें।
गर्भ गिराय गिराय, अहर्निश अर्भक मारें॥
ये अड़ की अनरीति, अनीति न घटने देंगे।
निठुर नकीले नाक, न हठ की कटने देंगे॥

(५०)


इस विधि मेरा बाप, कुढ़े था मन ही मन में।
तन में दुःख दुराय, न उगला कोप कथन में॥
होकर हाय! हताश, कुमत की पोल न खोली।
पञ्च प्रपञ्च पहाड़, कपट की राशि न तोली॥


  1. * कन्या परम पवित्र पाच=तारा १ मन्दोदरी २ अहल्या ३ कुन्ती ४ और द्रौपदी ५।