पृष्ठ:गर्भ-रण्डा-रहस्य.djvu/५३

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४२ गर्भ-रएडा-रहस्य। युवक सुनाते रीझ, रीझ इस भाँति बड़ाई। कमला से कमलेश, न कम है कमला बाई ॥ (१५३) समझाती रसिकेश, राधिका के करतब को। करती मुक्त, पिलाय, ज्ञान-गीतामृत सबको॥ चेतन के गुण गाय, अचेतन के पग चाटे। यों कुछ काल बिताय, ब्रह्मकण्टक दिन काटे। २-दानवीरता पर गीत । भेरा देने का ? न तार, देती दिलाती रहूँ ॥ टेक ॥ पारे की पूजा में पूजी लगाइँ, प्यारी पै प्राणों को वार-~- घंटा हिलाती रहूँ। मे० दे० ट० दे० दिलाती रहूँ । बीणा की वाणी सुधा सी बहादूं, गाने मे गमता का सार- सारा मिलाती रहूँ। मे० दे० ८० दे० दिलाती रहूँ ॥ सन्तों की सेवा में घाटा न यावे, परी कचौड़ी सुहार- पेडे खिलाती रहूँ। मे० दे. ८० दे० दिलाती रहूं ॥ साथी रहे शंकरानन्द दाता, पञ्चों को प्रांमू की धार- रो रो पिलाती रहूँ। मे० दे. ८० दे० दिलाती रहूँ॥