पृष्ठ:गर्भ-रण्डा-रहस्य.djvu/८९

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'७८ गर्भ-रण्डा-रहस्य । (२७६) बोली बस बस मान, धीर धर कमला बाई । मरती है शिर फोड़, फोड़ करक्यों बिनभाई। बिगड़ा जीवन, काल, कटा संकटमय मेरा। अब न मिलेगा बाप, किसी विधिबिटिया तेरा॥ (२८०) शोक बिसार विसार, विकल माता बकती थी। हृदय-वेदना दूर, भलाकब हो सकती थी। फिर भी रोदन रोक, कथन माना जननी का । पर दाहक संताप, न निकला जलते जी का॥ (२८१) पूज्य, पिता के गुणगण गाये। शोकासन पर बैठ, दिवस दो तीन बिताये। बुलवाये कुलदेव, पुरोहित, पञ्च, पुजारी । मृतक-श्राद्ध की बात, लगी करने महतारी॥ (२८२) सब की सम्मति मान, बनाकर बानिक सारा । पद्धति के अनुसार, 'सनातनधर्म' पसारा ॥ दान दिया भरपूर, पूजकर कुल-कट्या को देकर बढ़िया भोज, किया परितृप्त पिता को। धर्म-परायण पूज्य, ।