इसी समय पीछे से किसी ने कहा—सावधान! भैरव! सावधान! अतिथि का अपमान मत करना।
भैरव ने चौंककर पीछे देखा कि स्वयं रानी कमलावती खड़ी हैं।
शाह जमाल ने देखा कि, इस बार कमलावती का मुख खुला नहीं है, वह अवगुण्ठन से आवृत है।
कमलावती ने शाह जमाल की ओर देखकर कहा—जनाब! आप गुर्ज्जर पर कलंक आरोपण करने के लिये उद्यत हो गये थे; इसीलिये मुझे आना पड़ा। यह ध्यान रखिए कि गुर्ज्जर की रानी अपने अतिथि के साथ अशिष्ट व्यवहार नहीं करती।
कमलावती यह कहकर चुप हो गई। शाह जमाल ने सिर नीचा कर लिया। कमलावती ने फिर गम्भीर स्वर से कहा—जनाब, मैं अब अधिक समय तक नहीं ठहर सकती; क्योंकि पूजा का समय जा रहा है। यदि हम से कुछ भूल हुई हो, तो उसे आ क्षमा करें; भूल सभी से हो जाती है। हाँ यह भी कहे देती हूँ कि आप फिर कभी छद्म-वेष से गुर्ज्जर-प्रदेश में न आइयेगा,नहीं तो आप विपद् में पड़ेंगे।
कमलावती शीघ्रता से चली गई। जैसे विद्युत् क्षण-भर में आकाश-मण्डल में प्रकट होकर फिर लुप्त हो जाती है, वैसे ही वह शीघ्रता से आई और शीघ्रता से ही चली गई। शाह जमाल देखता ही रह गया।
सेनापति रुस्तम ने कहा—शाहज़ादे! अब आप वृथा विलम्ब क्यों करते हैं?