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तूती—मैना

देखकर कुमार मुग्ध हुए बिना न रह सके। वे मन-ही-मन सोचते थे कि चाहे तूती देवाङ्गना हो या वनदेवी हो; पर अपने राज्य में आई हुई सर्वोत्तम वस्तु को अब दूसरे किसी के हाथ में न जाने दूंगा। राज्यभर में जितनी उत्तमोत्तम वस्तुएं हों, उन सबका संग्रह राजाओं को अवश्य ही करना चाहिये।

(५)

द्रुम-लताओं की ओट में छिपे-छिपे एक महात्माजी सारी प्रेम-लीला देख रहे थे। तूती को स्वाभाविक सरलता और कुमार की प्रेमकता देखकर हँसते हंसते ये पूरब की ओर से प्रकट हुए। मानो आशुतोष शिव ओढरदानी तूती और कुमार के प्रेम-योग से सन्तुष्ट होकर उनके मनोरथ पूर्ण करने के निमित्त प्रकट हुए हों। महात्माजी सर्वाङ्ग में भस्म रमाये, सिर पर जटा बाँधे और हाथ में सुमिरनी लिधे हुए थे। इन्होंने ही तूती को, गंगा को बाढ़ में बहते जाते हुए देख कर, पकड़ा था और चार वर्ष की अवस्था से ही आज सोलह वर्ष को अवस्था तक, बड़े लाड़-प्यार से पाला था।

महात्मा को देख कर तूती सहम गई। राजकुमार, चकित होकर चरणों में झुक गये। महात्मा ने पूछा—तू कौन है। तेरा यहाँ क्या काम है?—राजकुमार ने हाथ जोड़कर कहा-महात्मन्! मृगयावश इस जंगल में चला आया हूँ। एकाएक मैं आपकी कुटी की ओर निकल आया। यहाँ आने पर, मैं इस देवी को देखकर स्तम्भित हो गया। मैंने ऐसा भोला-भाला अनूठा रूप कभी देखा नहीं था। इस पर्ण-कुटी के पास आते ही, मैंने