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पृष्ठ:गल्प समुच्चय.djvu/२५७

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मुस्कान

अवाधगति के लिये यह अनिवार्य रूप से आवश्यक है, कि उसे ज्ञान,विवेक और आत्मानुभूति का पवित्र साहचर्य प्राप्त हो जाये। इसीलिये उन्होने स्वयं गुणसुन्दरी को संस्कृत तथा अन्य देशी भाषाओं की ऊँची शिक्षा दी थी। वाल्मीकि रामायण और महाभारत के प्रसिद्ध श्लोक की वह दस-दस बार आवृति कर चुकी थी। कला-कौशल तथा गृह-प्रबन्ध की उसे पर्याप्त शिक्षा विवाह से पहले ही मिल चुकी थी; इसीलिये गुणसुन्दरी केवल अतुलनीया सुन्दरी ही नहीं थी, वह अद्वितीया गुणवती विदुषी भी थीं।

सत्येन्द्र के घर में आते ही उसने गृहस्थी का सुचारु प्रबन्ध करना प्रारम्भ कर दिया। माधुर्य्य और आनन्द की नदी-सी उस घर में प्रवाहित होने लगी। प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर वह नित्य कर्मादि से निवृत्त हो जाती और उसके उपरान्त वह गृह-संलग्न उद्यान से सुमन चयन करके लाती तथा चन्दन,नैवेद्य इत्यादि प्रस्तुत करके वह सत्येन्द्र के स्नानादि से निवृत्त होते-न-होते उनकी पूजा की मधुर व्यवस्था कर देती। अपने हाथ ही से वह सुस्वाद भोजन बनाती और बड़े प्रेम से अपनी बहिन और जीजाजी को जिमाती। सत्येन्द्र के कालिज चले जाने पर उनके पठन-कक्ष को साफ़ कर के वह उनकी पुस्तकों को सुंदर प्रकार से सजा देती। सायंकाल को अपने हाथ से सुगंधित फूलों के सुरम्य गुलदस्ते बनाकर वह उनके टेबुल पर लगा देती। इस प्रकार गुणवती गुणसुन्दरी ने सत्येन्द्र को सुशीला की प्रेममयी सेवा एवं श्रद्धा-मयी सुश्रूषा का अभाव कणभर भी अनुभव नहीं करने दिया। सुत्येन्द्र