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पृष्ठ:गल्प समुच्चय.djvu/२९३

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उमा

कलाई पर बँधी हुई घड़ी देखी और कहा—बड़ी भूल हुई।

अच्छा, मैं आप लोगों से इजाजत चाहता हूँ।

"नहीं-नहीं, इस समय कहाँ जाओगे।"

"मुझे बड़ा जरूरी काम है,"—यह कहते हुए बिहारीलाल अपनी गाड़ी की ओर बढ़े। कोचवान ने अदब से गाड़ी का दरवाज़ा खोल दिया। बाबू साहब सवार हुए। गाड़ी हवा से बातें करने लगी। मित्रों को रोकने का मौका न मिला।

आध घण्टे में गाड़ी चौक पहुँची। बिहारीलाल उतरे और कोचवान को रुके रहने की ताक़ीद करके एक गली में घुस गये। गली में सन्नाटा छाया हुआ था, कुत्ते भी भूँकते-भूँकते थक गये थे और जगह-जगह कूड़े के ढेरों पर पड़े झपकियाँ ले रहे थे, गली अँधेरी थी, लेकिन बिहारी इस शीघ्रता और सफाई से चले जा रहे थे, मानो नित्य चलते-चलते उनके पैर गली के एक-एक कंकड़- पत्थर से परिचित हो गये हों। बिहारी एक विशाल भवन के सामने जाकर रुक गये। मकान के नीचे का हिस्सा अँधेरा पड़ा था; लेकिन ऊपर की खिड़कियों से रोशनी छन-छनकर सामने के मकान पर पड़ रही थी। पूर्ण निस्तब्धता छाई हुई थी—वह विचारोत्पादक निस्तब्धता, जो गाना रुकने के बाद फैल जाती है। बिहारी ने दरवाज़ा खटखटाया, कोई जवाब न मिला; हाँ इसी समय सारङ्गी के तारों से निकला हुआ कोमल-मधुर स्वर दिशाओं में गूंज उठा। तबले पर थाप पड़ी और किसी सुन्दरी के कोमल कण्ठ से निकला हुआ, दिल खींच लेनेवाला अलाप सारङ्गी के लय