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उमा

गुलाब का एक अधखिला फूल तोड़ा और रतन के कोट में लगाने लगी। एक तो सौरभ, रङ्ग और समीर की उत्तेजक शक्ति, और फिर प्रेमी के कोमल करों का मधुर स्पर्श—रतन सिहर उठे, बदन में बिजली-सी दौड़ गई, हृदय की गति तीव्र हो गई। उमा की उँगलियाँ अपना काम पूरा कर चुकी थीं, वह हाथ हटाना ही चाहती थी कि रतन ने विद्युत-वेग से उमा की कुसुम-कोमल हथेली अपने गर्म हाथों में ले ली। उमा का मुख आरक्त हो गया, आँखें नीली हो गई। उसके हृदय में लज्जा अधिक थी, या विजयोल्लास—यह कहना कठिन है। इसी समय बँगले में किसी गाड़ी के प्रवेश करने का शब्द हुआ। उमा ने हाथ छुड़ा लिया और शीघ्रता से वाटिका के बाहर चली गई। गाड़ी में बिहारी आये थे। बिहारी ने उमा को वाटिका से निकलते देख लिया। उन्हें कुछ सन्देह हुआ। वे गाड़ी से उतरते ही बाग़ में गये और रतन को मानसिक विकलता की दशा में भूमि की ओर ताकते हुए पाया। रतन को बिहारी के आने की खबर तक न हुई, वे वैसे ही खड़े रहे। बिहारी उलटे पैर लौट आये। सन्देह में अंकुर फूट पड़ा। उमा की उदासीनता का कारण स्पष्ट हो गया। बिहारी ने सोचा—ये महाशय आज-कल यहाँ क्यों चक्कर काटा करते हैं। पहले तो इतनी कृपा न करते थे। इसमें कुछ-न-कुछ भेद अवश्य है।

(७)

रतन की इस समय वह दशा थी, जो पहली बार शराब पीने