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उमा

बन्द नेत्रों पर क्षमा और प्रेम का चिह्न अङ्कित कर दिया; परन्तु सहसा वे चौंक पड़े और उमा के मुख की ओर ध्यान से देखने लगे। कलाई पर हाथ रक्खा, नब्ज का कहीं पता न था। हृदय पर हाथ रक्खा, गति स्थगित हो चुकी थी। चिराग बुझ चुका था, यात्रा समाप्त हो चुकी थी। उमा का निर्जीव शरीर मृत्यु-शय्या पर पड़ा था। फर्श पर एक खाली शीशी पड़ी थी, जिस पर अँगरेजी अक्षरों में लिखा था-'विष'। बिहारी के मुख से एक चीख निकल गई। वे लास से लिपट गये। बिहारी के प्रेमाश्रु से भीगा हुआ उमा का आभाहीन मुख ऐसा जान पड़ता था, मानो अरुणोदय के समय ओस में नहाया हुआ कोमल पुष्प हो!