पांचवी कथा १०५ शायद नोंद आ जाय । कमी जान के भय से उठ बैठते थे। अभिप्राय यह कि किसी तरह रात काटी। प्रातःकाल विद्रोही सिपाही इनके चारो तरफ मँडलाते दृष्टि पड़े। किंतु धन्यवाद है ईश्वर का कि उन्हें उस गप्त स्थान का पता न लगा, जहाँ चे लोग थे । जव कोई दृष्टि न पड़ा, तब लाचार हो खोज के लिये सिपाही श्राने बढ़ गए। ये अफसर जहाँ ठहरे थे, उसके इर्द-गिर्द के लोगों के बहुत आभारी हुए, क्योंकि गांववालों ने इन्हें बहुत सहायता पहुँचाई थी। किसी ने खाना खिलाया, किसी ने अपने घर में छिपा रक्खा । रात-भर जो लोग अलग रहे थे, आ मिले । गांववालों ने उन अंगरेजों को, जिनकी रक्षा का वचन दिया था, यमुना के एक नाले को पार कराके जंगल में एक निरापद् स्थान पर छिपा दिया, और तीसरे पहर आकर सूचना दी कि अँगरेजों का एक दल, जिसमें मेमें भी हैं, निकट ही कहीं ठहरा है। यह दल वह था, जो कश्मीरी दरवाजे से भागा था, और जब वहाँ शांति न देखी, तो मेमों को तोप की पेटी पर सवार कराकर छावनी भेजा था। विद्रोहियों ने उन्हें रास्ते में लूट लिया था, बल्कि इन पर गोली भी चलाई थी। इसके बाद ये लोग खंदक में उत्तरकर दूसरी तरफ से चढ़कर भाग गए थे। इन्हीं में से एक मेम के कंधे में गोली का घाव भी लगा था। निदान, वहाँ से भागकर तमाम रात यह दल भी हैरान और परेशान घूमता रहा । कई दफे सिपाहियों के हाथों से कठिनाई से बचा । कभी-कभी तो
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